जानिए आपका शरीर कैसा हैं? आयुर्वेद के अनुसार , वात, पित्त, कफ त्रिदोष
आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य है स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगों से बचाव करना ।
आयुर्वेद के चिकित्सा केवल रोगों के लक्षण पर आधारित नहीं बल्कि वात पित्त कफ आदि की स्थिति को ध्यान में रखकर रोगी की चिकित्सा करता है
आयुर्वेद में तीन दोषों का वर्णन है जिनको संतुलन होना हीरो का कारण है वात पित्त कफ का असंतुलन होना हीरो का दोष है
अच्छे स्वास्थ्य के लिए वात पित्त कफ इन तीनों का संतुलन होना बहुत ही आवश्यक है। विरुद्ध आहार तथा नियमित व्यायाम से इसका संतुलन बिगड़ने लगता है।
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वात, पित्त, कफ |
आइए जानते हैं वात, पित्त, कफ के बारे में :-
वात :-
इसका गठन अंतरिक्ष और वायु द्वारा किया गया है। इसका काम शरीर में सभी गतिविधियों को नियंत्रण करना है ।यह आंखों का झपकना, दिल की धड़कन और श्वास लेना आदि , कई शरीर के कार्य को करता है।
वात के असंतुलन होने से डर तथा चिंता नजर आती है। गठिया फेफड़ों के विकार तथा भूलने की बीमारी वात के असंतुलन होने से ही होती है।
वात को संतुलन करने के लिए तांबे के बर्तन में पानी पिए तथा लहसुन का उपयोग करें और हल्दी का दूध हमें वात की बीमारी से बचाता है।
पित्त :-
जो शरीर में तापमान उत्पन्न होता है, वह पित्त ही हैं पित्त ही हमारे शरीर में सप्त धातुओं का निर्माण करता है। यह जीवन शक्ति और भूख को बढ़ाता है ।
पित्त के संतुलन होने से व्यक्ति में दृढ़ इच्छा शक्ति बढ़ती है तथा नेतृव के गुण होते हैं तथा
पित्त के असंतुलन होने से व्यक्ति में क्रोध बढ़ता है , तथा शरीर में अल्सर, सूजन जैसी बीमारी उत्पन्न होती हैं।
मक्खन और दूध प्रीत के दोष को दूर करते हैं । योग तथा मेडिटेशन के द्वारा पित्त को संतुलित किया जा सकता है।
कफ़ :-
इसका गठन पृथ्वी तथा पानी से किया है ।यह शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने में सहायक होता है। कफ के संतुलन होने पर व्यक्ति शान्त तथा स्थिर और विचारशील होता है।
कफ के असंतुलन होने पर व्यक्ति को हमेशा सुस्ती बनी रहती है तथा नींद ज्यादा आती है, और चिड़चिड़ापन बना रहता है।
कफ को संतुलित रखने के लिए हरी सब्जी तथा पनीर का सेवन और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
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