Ticker

6/recent/ticker-posts

बालवीर हकीकत राय || धर्म के लिए बलिदान हुए वीर हकीकत रॉय ||Veer Haqikat Roy sacrificed for religion

     

      वीर हकीकत राय का जन्म 1719 में पंजाब के सियालकोट नगर में हुआ था। वे अपने पिता भागमल के इकलौते पुत्र थे श्री भाग मल व्यापारी थे पर उनकी इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़ लिखकर बड़ा अधिकारी बने इसलिए उन्होंने हकीकत राय को एक मदरसे में फारसी सीखने भेजा।

Veer Haqikat Roy sacrificed for religion
वीर हकीकत रॉय


     इस मदरसे में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र मुसलमान थे और पढ़ाने वाले मौलवी जी थे। अपनी प्रतिभा और कुशाग्र बुद्धि के कारण हकीकत राय ने मौलवी जी का मन जीत लिया। मदरसे से लौटते समय छात्र अनवर और रसीद ने कबड्डी खेलने का आमंत्रण दिया।


    हकीकत राय ने खेलने के प्रति अपनी अनिच्छा  प्रकट  की पर जब वे वे दोनों बार-बार आग्रह करने लगे तो हकीकत राय ने कहा - "भाई माता भवानी की सौगंध आज मेरा खेलने का बिल्कुल भी मन नहीं है"। इस पर अनवर ने कहा- "अबे भवानी मां के बच्चे एक पत्थर के टुकड़े को मां कहते हुए तुझे शर्म आनी चाहिए, मैं तुम्हारी देवी को सड़क पर फेंक दूंगा जिससे रास्ता चलते लोग लातों से तुम्हारी मां भवानी की पूजा कर करेंगे"। 

      माता भवानी के प्रति इन अपशब्दों को सुनकर हकीकत राय के स्वाभिमान को चोट पहुंची। तिलमिलाकर उसने कहा- "यदि यही बात मैं तुम्हारी पूज्य फातिमा बीवी के लिए कह दूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?"


     अनवर ने क्रोध में भरकर कहा- "हम तुम्हारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे"। बात बढ़ गई। पास पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए मौलवी जी को बुलाया गया मौलवी जी ने हकीकत राय से क्षमा हकीकत राय से क्षमा मांगने के लिए कहा। इस पर हकीकत राय ने कहा- "मैंने कोई गुनाह नहीं किया तो मैं क्षमा क्यों मांगू।"


       इस पर लड़कों ने हकीकत राय को बांध लिया बांध लिया और काजी के पास ले गए पास ले गए । घटना का पूरा विवरण सुनकर काजी ने हकीकत राय से पूछा हकीकत राय से पूछा- "क्या तुमने रसूलजादी फातिमा बीवी को गाली दी?"


        हकीकत राय ने साफ-साफ सारा विवरण बताते हुए कहा कि यदि उसे गाली नहीं दी। उस पर काजी काजी भड़क गया और उसने निर्णय सुनाते हुए कहा - "इस लड़के को यदि अपनी जान बचानी है तो उसे इस्लाम कबूल करना होगा।"


       हकीकत राय ने यह सुनकर शेर की तरह गरज कर कहा - "मैं अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कभी नहीं स्वीकार करूंगा"। 

      कुछ देर बाद काजी हकीम के पास पहुंच गया हकीम ने भी पूरी घटना का विवरण सुना । तब हकीम ने कहा अच्छा अब हम खुद हकीकत से पूछ कर फैसला फैसला कर फैसला फैसला करेंगे।


     बालक हकीकत राय को दरबार में उपस्थित किया गया।  वहां उनके पिता पहले ही उपस्थित हो चुके थे। पिता को देखते ही मैं उनसे उनसे लिपट गया। हकीम को सलाम करने का भी उसे ध्यान नहीं रहा । हकीकत के इस व्यवहार से हकीम ने चिल्लाकर कहा- "तुम कैसे बदतमीज लड़के हो तुमने हमें सलाम सलाम हमें सलाम हमें सलाम तक नहीं किया।"  हकीकत राय ने उत्तर दिया - "हकीम साहब जुल्म करने वालों को मैं सलाम करना उचित नहीं समझता।"


       तब हकीकत राय के इस कथन में हकीम शाह नाजिम का गुस्सा सातवें आसमान पर चल गया। उसने हकीकत राय से अपनी जीवन रक्षा के लिए वही शर्त रखी जो काजी ने रखी थी। पर हकीकत राय ने तब भी भी अपने निर्णय पर अटल रहते हुए कहा - "अपने धर्म को त्याग कर पाई गई जिंदगी से मौत हजार गुना श्रेष्ठ है, मैं अपने प्राण दे दूंगा परंतु अन्याय के सामने नहीं रुकूंगा।"


    और अंत में हकीकत राय को तत्कालीन शासकों की धार्मिक कट्टरता के कारण अपने प्राण गंवाने पड़े। जल्लाद ने एक ही वार से से हकीकत राय का सिर काटकर अलग कर दिया । उस समय उनकी आयु मात्र 13 वर्ष थी।


    उनकी पत्नी पति की मृत्यु के साथ सती हो गई , और माता - पिता ने पुत्र के वियोग में विलाप करते -करते अपने प्राण त्याग दिए । धर्म की रक्षा के लिए इस किशोर बालक का बलिदान सदा स्मरणीय रहेगा।


   वीर हकीकत राय का जन्म 1719 में पंजाब के सियालकोट नगर में हुआ था। वे अपने पिता भागमल के इकलौते पुत्र थे श्री भाग मल व्यापारी थे पर उनकी इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़ लिखकर बड़ा अधिकारी बने इसलिए उन्होंने हकीकत राय को एक मदरसे में फारसी सीखने भेजा।


     इस मदरसे में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र मुसलमान थे और पढ़ाने वाले मौलवी जी थे। अपनी प्रतिभा और कुशाग्र बुद्धि के कारण हकीकत राय ने मौलवी जी का मन जीत लिया। मदरसे से लौटते समय छात्र अनवर और रसीद ने कबड्डी खेलने का आमंत्रण दिया।


    हकीकत राय ने खेलने के प्रति अपनी अनिच्छा  प्रकट  की पर जब वे वे दोनों बार-बार आग्रह करने लगे तो हकीकत राय ने कहा - "भाई माता भवानी की सौगंध आज मेरा खेलने का बिल्कुल भी मन नहीं है"। इस पर अनवर ने कहा- "अबे भवानी मां के बच्चे एक पत्थर के टुकड़े को मां कहते हुए तुझे शर्म आनी चाहिए, मैं तुम्हारी देवी को सड़क पर फेंक दूंगा जिससे रास्ता चलते लोग लातों से तुम्हारी मां भवानी की पूजा कर करेंगे"। 

      माता भवानी के प्रति इन अपशब्दों को सुनकर हकीकत राय के स्वाभिमान को चोट पहुंची। तिलमिलाकर उसने कहा- "यदि यही बात मैं तुम्हारी पूज्य फातिमा बीवी के लिए कह दूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?"


     अनवर ने क्रोध में भरकर कहा- "हम तुम्हारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे"। बात बढ़ गई। पास पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए मौलवी जी को बुलाया गया मौलवी जी ने हकीकत राय से क्षमा हकीकत राय से क्षमा मांगने के लिए कहा। इस पर हकीकत राय ने कहा- "मैंने कोई गुनाह नहीं किया तो मैं क्षमा क्यों मांगू।"


       इस पर लड़कों ने हकीकत राय को बांध लिया बांध लिया और काजी के पास ले गए पास ले गए । घटना का पूरा विवरण सुनकर काजी ने हकीकत राय से पूछा हकीकत राय से पूछा- "क्या तुमने रसूलजादी फातिमा बीवी को गाली दी?"


        हकीकत राय ने साफ-साफ सारा विवरण बताते हुए कहा कि यदि उसे गाली नहीं दी। उस पर काजी काजी भड़क गया और उसने निर्णय सुनाते हुए कहा - "इस लड़के को यदि अपनी जान बचानी है तो उसे इस्लाम कबूल करना होगा।"


       हकीकत राय ने यह सुनकर शेर की तरह गरज कर कहा - "मैं अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कभी नहीं स्वीकार करूंगा"। 

      कुछ देर बाद काजी हकीम के पास पहुंच गया हकीम ने भी पूरी घटना का विवरण सुना । तब हकीम ने कहा अच्छा अब हम खुद हकीकत से पूछ कर फैसला फैसला कर फैसला फैसला करेंगे।


     बालक हकीकत राय को दरबार में उपस्थित किया गया।  वहां उनके पिता पहले ही उपस्थित हो चुके थे। पिता को देखते ही मैं उनसे उनसे लिपट गया। हकीम को सलाम करने का भी उसे ध्यान नहीं रहा । हकीकत के इस व्यवहार से हकीम ने चिल्लाकर कहा- "तुम कैसे बदतमीज लड़के हो तुमने हमें सलाम सलाम हमें सलाम हमें सलाम तक नहीं किया।"  हकीकत राय ने उत्तर दिया - "हकीम साहब जुल्म करने वालों को मैं सलाम करना उचित नहीं समझता।"


       तब हकीकत राय के इस कथन में हकीम शाह नाजिम का गुस्सा सातवें आसमान पर चल गया। उसने हकीकत राय से अपनी जीवन रक्षा के लिए वही शर्त रखी जो काजी ने रखी थी। पर हकीकत राय ने तब भी भी अपने निर्णय पर अटल रहते हुए कहा - "अपने धर्म को त्याग कर पाई गई जिंदगी से मौत हजार गुना श्रेष्ठ है, मैं अपने प्राण दे दूंगा परंतु अन्याय के सामने नहीं रुकूंगा।"


    और अंत में हकीकत राय को तत्कालीन शासकों की धार्मिक कट्टरता के कारण अपने प्राण गंवाने पड़े। जल्लाद ने एक ही वार से से हकीकत राय का सिर काटकर अलग कर दिया । उस समय उनकी आयु मात्र 13 वर्ष थी।


    उनकी पत्नी पति की मृत्यु के साथ सती हो गई , और माता - पिता ने पुत्र के वियोग में विलाप करते -करते अपने प्राण त्याग दिए । धर्म की रक्षा के लिए इस किशोर बालक का बलिदान सदा स्मरणीय रहेगा।



     वीर हकीकत राय का जन्म 1719 में पंजाब के सियालकोट नगर में हुआ था। वे अपने पिता भागमल के इकलौते पुत्र थे श्री भाग मल व्यापारी थे पर उनकी इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़ लिखकर बड़ा अधिकारी बने इसलिए उन्होंने हकीकत राय को एक मदरसे में फारसी सीखने भेजा।


     इस मदरसे में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र मुसलमान थे और पढ़ाने वाले मौलवी जी थे। अपनी प्रतिभा और कुशाग्र बुद्धि के कारण हकीकत राय ने मौलवी जी का मन जीत लिया। मदरसे से लौटते समय छात्र अनवर और रसीद ने कबड्डी खेलने का आमंत्रण दिया।


    हकीकत राय ने खेलने के प्रति अपनी अनिच्छा  प्रकट  की पर जब वे वे दोनों बार-बार आग्रह करने लगे तो हकीकत राय ने कहा - "भाई माता भवानी की सौगंध आज मेरा खेलने का बिल्कुल भी मन नहीं है"। इस पर अनवर ने कहा- "अबे भवानी मां के बच्चे एक पत्थर के टुकड़े को मां कहते हुए तुझे शर्म आनी चाहिए, मैं तुम्हारी देवी को सड़क पर फेंक दूंगा जिससे रास्ता चलते लोग लातों से तुम्हारी मां भवानी की पूजा कर करेंगे"। 

      माता भवानी के प्रति इन अपशब्दों को सुनकर हकीकत राय के स्वाभिमान को चोट पहुंची। तिलमिलाकर उसने कहा- "यदि यही बात मैं तुम्हारी पूज्य फातिमा बीवी के लिए कह दूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?"


     अनवर ने क्रोध में भरकर कहा- "हम तुम्हारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे"। बात बढ़ गई। पास पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए मौलवी जी को बुलाया गया मौलवी जी ने हकीकत राय से क्षमा हकीकत राय से क्षमा मांगने के लिए कहा। इस पर हकीकत राय ने कहा- "मैंने कोई गुनाह नहीं किया तो मैं क्षमा क्यों मांगू।"


       इस पर लड़कों ने हकीकत राय को बांध लिया बांध लिया और काजी के पास ले गए पास ले गए । घटना का पूरा विवरण सुनकर काजी ने हकीकत राय से पूछा हकीकत राय से पूछा- "क्या तुमने रसूलजादी फातिमा बीवी को गाली दी?"


     बालवीर हकीकत  ने साफ-२ सारा विवरण बताते हुए कहा कि यदि उसे गाली नहीं दी। उस पर काजी काजी भड़क गया और उसने निर्णय सुनाते हुए कहा - "इस लड़के को यदि अपनी जान बचानी है तो उसे इस्लाम कबूल करना होगा।"


       हकीकत राय ने यह सुनकर शेर की तरह गरज कर कहा - "मैं अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कभी नहीं स्वीकार करूंगा"। 

      कुछ देर बाद काजी हकीम के पास पहुंच गया हकीम ने भी पूरी घटना का विवरण सुना । तब हकीम ने कहा अच्छा अब हम खुद हकीकत से पूछ कर फैसला फैसला कर फैसला फैसला करेंगे।


     बालक हकीकत राय को दरबार में उपस्थित किया गया।  वहां उनके पिता पहले ही उपस्थित हो चुके थे। पिता को देखते ही मैं उनसे उनसे लिपट गया। हकीम को सलाम करने का भी उसे ध्यान नहीं रहा । हकीकत के इस व्यवहार से हकीम ने चिल्लाकर कहा- "तुम कैसे बदतमीज लड़के हो तुमने हमें सलाम सलाम हमें सलाम हमें सलाम तक नहीं किया।"  हकीकत राय ने उत्तर दिया - "हकीम साहब जुल्म करने वालों को मैं सलाम करना उचित नहीं समझता।"


       तब हकीकत राय के इस कथन में हकीम शाह नाजिम का गुस्सा सातवें आसमान पर चल गया। उसने हकीकत राय से अपनी जीवन रक्षा के लिए वही शर्त रखी जो काजी ने रखी थी। पर हकीकत राय ने तब भी भी अपने निर्णय पर अटल रहते हुए कहा - "अपने धर्म को त्याग कर पाई गई जिंदगी से मौत हजार गुना श्रेष्ठ है, मैं अपने प्राण दे दूंगा परंतु अन्याय के सामने नहीं रुकूंगा।"


    और अंत में हकीकत राय को तत्कालीन शासकों की धार्मिक कट्टरता के कारण अपने प्राण गंवाने पड़े। जल्लाद ने एक ही वार से से हकीकत राय का सिर काटकर अलग कर दिया । उस समय उनकी आयु मात्र 13 वर्ष थी।


    उनकी पत्नी पति की मृत्यु के साथ सती हो गई , और माता - पिता ने पुत्र के वियोग में विलाप करते -करते अपने प्राण त्याग दिए । धर्म की रक्षा के लिए इस किशोर बालक का बलिदान सदा स्मरणीय रहेगा।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ