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Ashtanga yoga - अष्टांग योग का सम्पूर्ण परिचय, यम- नियम क्या हैं ? || Yoga Syllabus.

 

अष्टांग योग

     Ashtanga yoga  के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति करने के आठ प्रकार के अभ्यास हैं। यह महर्षि पतंजलि द्वारा 400 ईसा पूर्व  पतंजलि योग सूत्र के रूप में दिया गया । जिसमें 4 पद  हैं।


Ashtanga yoga - अष्टांग योग का सम्पूर्ण परिचय, यम- नियम क्या हैं ? || Yoga Syllabus.
Ashtanga yoga



4 पद इस प्रकार इस प्रकार हैं -

1.समाधि पाद
2.साधना पाद
3.विभूति पाद
4.कैवल्य पाद

अष्टांग योग के अंग इस प्रकार है--

1. यम
2. नियम
3. आसन
4. प्राणायाम
5. प्रत्याहार
6. धारणा
7. ध्यान
8. समाधि

1.यम :- यम अष्टांग योग का प्रथम अंग है । इंद्रियों की संयम की क्रिया ही यम है। यम पांच प्रकार के होते हैं-

अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह

१.अहिंसा:- अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्वसन्नियौ वैराग्य: ।।
          मन, वचन कर्म से किसी का बुरा नहीं करना बुरा नहीं सोचना अहिंसा है ।

२.सत्य:- सत्य प्रतिष्ठयां क्रिया फलाश्रमत्वम।।
          व्यक्ति के कर्म तथा वचनों में सत्यता होनी चाहिए। जिससे सभी जीवो का हित हो।

३.अस्तेय:- अस्तेय प्रतिष्ठायां: सर्वरत्नोपस्थानम।।
          चोरी ना करना, किसी दूसरे व्यक्ति की वस्तु को पाने की इच्छा हम अपने मन द्वारा करते हैं तो वह मन द्वारा चोरी होती है, अर्थात शरीर, मन, वचन, कर्म द्वारा दूसरे की वस्तु की इच्छा न करना।

४.ब्रह्मचर्य:- ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्यलाम:।।
       पूर्ण रूप से ब्रह्म का आचरण करना, मन, वाणी, शरीर आदि द्वारा कामेच्छा का परित्याग करना ब्रह्मचर्य है।

५.अपरिग्रह:- अपरिग्रह स्थैर्ये जन्मक थन्तां सबोध:।।
         अपरिग्रह किसी भी सांसारिक चीज धन- दौलत आदि चीजो का न इकट्ठा करना या इकट्ठा न करते हुए अपनी वस्तुओं से संतुष्ट रहना ही अपरिग्रह हैं।

2.नियम:- अष्टांग योग का दूसरा अंग नियम है। व्यक्तिगत, नैतिकता व सदाचार का पालन करना ही नियम है। नियम के पांच अंग है-

शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणीधान

१.शौच:- शौचतस्वाSगजुगुप्सा परैरखसर्ग: ।। 
     मन तथा शरीर की शुद्धि शौच है।

२.संतोष:- सन्तोषदनुत्तमसुखलाभः।।
      जो कुछ है उसी में संतुष्ट रहना ही संतोष है।

३.तप:- कामेंद्रियसिद्धिरशुद्धिक्षयत्तपस: ।।
      जिस तरह लोहे को आग में जलाकर  तपाया पाया जाता है, उसी प्रकार शरीर तप के माध्यम से और भी ज्यादा ऊर्जावान सहनशील बनाया जाता है।

४.स्वाध्याय:- स्वाध्यायादिष्टदेवतासमप्रयोग:।।
       स्वम का अध्यन करना। वेद , पुराण , प्राचीन ग्रंथओ अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है।

५.ईश्वर प्राणीधान:- समाधिसिद्धिरोश्वर प्रणिधानात।।
           ईश्वर का अध्ययन करना। तन, मन, धन से पूर्ण रूप  से ईश्वर को समर्पित हो जाना। ईश्वर प्राणीधान कहलाता है

3.आसन:- स्थिरसुखमासनम।।
          सुख पूर्वक स्थिर बैठने का नाम आसन है। आसान अष्टांग योग का तीसरा अंग आसन है।

4.प्राणायाम:- तस्मिनस्ति श्वासप्रश्वासयोगीतिविच्छेद:।।
        प्राणायाम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, प्राण + आयाम, प्राण शब्द का अर्थ जीवनी शक्ति और आयाम का अर्थ नियंत्रण करना । आती - जाती सांसों को नियंत्रण में  करना प्राणायाम है ।

5.प्रत्याहार:- स्वविषयाससम्प्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार देवेन्द्रिया प्रत्याहार:।।
       प्रत्याहार का अर्थ इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर मन पर नियंत्रण करना, अर्थात अपने आप की  इंद्रियों को वश में करना ही प्रत्याहार है।

6.धारणा:- देशबन्धश्चित्तस्य धारणा।।
      धारणा का अर्थ है चित्त को एक स्थान पर जमाना, अर्थात किसी स्थान पर पूर्ण रुप से ध्यान लगाना ही धारणा है।

7.ध्यान:- तत्र प्रत्यमैकतानता ध्यानम।।
      चित्त को निरंतर एक विषय पर एकाग्र बनाए रखना ध्यान कहलाता है, अर्थात धारणा के बाद यह स्थिति खुद ही लग जाती हैं।

8.समाधि:- तदे वार्थमात्रनिर्भासंस्वरूपशुन्यमित समाधि।।
      स्वयं के स्वरूप में शुन्यता की और पहुंचना ही समाधि है। अर्थात नियंतर ध्यान में होने के पश्चात यह स्वयं ही होने वाली स्थिति है । इसमें योगी का बाह्य जगत से कोई संबंध नहीं रहता। भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी की अनुभूति नहीं होती। योगी का चित आनंद के रूप में ही हो जाता है।


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