फतेह सिंह, जोरावर सिंह
गुरु गोविंद सिंह के 4 पुत्र थे। अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह। अजीत सिंह और जुझार सिंह मुगल सेना के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। अपने छोटे पुत्रों जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह तथा उनकी दादी माता गुजरी को आनंदपुर में छोड़कर गुरु गोविंद सिंह जी आगे प्रवास पर गए। गंगु नामक ब्राह्मण उन्हें सुरक्षा का आश्वासन देकर अपने गांव ले गया।
गंगू 22 वर्ष तक गुरु गोविंद सिंह के पास रसोईया का काम कर चुका था। लेकिन उसने विश्वासघात करके बालको तथा माता गुजरी को वजीर खान को सौंप दिया। नवाब वजीर खान ने दोनों बालकों जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह से इस्लाम कबूल करने को कहा। इस पर दोनों वीर भाइयों ने कहा - "हमें अपना धर्म प्राणों से भी प्यारा है। उसे अंतिम सांस तक नहीं छोड़ सकते"।
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नवाब के दीवान सुचानन्द तथा काजी ने बालकों को समझाने का बहुत प्रयत्न किया। पर उन्होंने निर्भीकता पूर्वक उत्तर दिया- " हम गुरु गोविंद सिंह के पुत्र हैं हमारे दादा गुरु तेग बहादुर ने राष्ट्र धर्म की रक्षा के लिए अपना सर तक कटवा दिया अतः हम अपना धर्म कभी नहीं छोड़ेंगे"।
इस पर क्रोधित होकर नवाब वजीर खान ने उन्हें दीवार में जीवित चिनवा दिए जाने का आदेश सुनाया। इस कार्य के लिए मलेर कोटला के नवाब शेर मोहम्मद को बुलवाया गया पर उसने यह घृणित कार्य करने से साफ मना कर दिया। इस पर यह कार्य दिल्ली के सरकारी जल्लाद शिशल बेग तथा विशाल बेग को सौंपा गया।
फिर क्या था, दोनों ने सुकुमार बाल्को के आसपास दीवार चिने जाने लगी। धीरे-धीरे दीवार बालोंको के कान तक ऊंची हो गई।
एक बार फिर उसने कहा- "अब भी समय है अपने जीवन की रक्षा चाहते हो तो इस्लाम स्वीकार कर लो।"
इस पर बालकों ने कहा- " आप यह जो दीवार हमारे चारों और उठा रहे हैं। यह पाप तथा अत्याचार की दीवार हैं। इसे शीघ्रता से ऊंचा कीजिए। तभी मुगल साम्राज्य का पतन होगा।" यह कहकर दोनों भाई जपुजी साहब का पाठ करते हुए परमपिता परमात्मा को स्मरण करने लगे। बड़े भाई जोरावर सिंह ने अंतिम बार अपने छोटे भाई फतेह सिंह की ओर देखा। उसकी आंखों में आंसू भर आए। इस पर फतेह सिंह ने बड़े भाई से कहा- "भाई साहब आपकी आंखों में आंसू कैसे? क्या आप बलिदान से घबरा रहे हैं।"
इस पर जोरावर सिंह ने कहा- "मेरे प्यारे भाई आंखों में आंसू इसलिए है कि तू मुझसे छोटा है, पर बलिदान देने का गौरव तुझे पहले मिल रहा है।
इधर सूर्य भगवान अस्त हुए उधर दीवार पूरी हो गई। दीवार ने दोनों भाइयों को अपनी गोद में समान लिया। कुछ देर बाद दीवार गिर गई। दोनों बालक मूर्छित हो गए थे। निर्दयता पूर्वक उनका वध किया गया। माता गुजरी को बुर्ज से नीचे धकेल कर मार डाला गया।
इस अभूतपूर्व बलिदान के समय बालक जोरावर सिंह की आयु मात्र 7 वर्ष 11 माह की थी, तथा फतेह सिंह की आयु केवल 5 वर्ष 10 माह की थी।
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