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क्रान्ति की पहली चिंगारी मंगल पांडे || Mangal Pandey

 मंगल पांडे

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 ई० को फैजाबाद जिला उत्तर प्रदेश के सोरहरपुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था।


क्रान्ति की पहली चिंगारी मंगल पांडे || Mangal Pandey
मंगल पांडे 

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    मंगल पांडे बचपन से ही हष्ट - पुष्ट बलवान, साहसी तथा निडर थे। सेना में भर्ती होकर एक वीर योद्धा बनने की वह आकांक्षा उनके भीतर प्रारंभ से ही थी।  एक बार उन्होंने अपने गांव में अंग्रेजी सेना को मोर्चा करते हुए गुजरते देखा। सेना की चुस्ती और अनुशासित चाल देखकर वे बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने सेना में भर्ती होने का निश्चय कर लिया। सेना में भर्ती होने के बाद वे 19 नम्बर को पलटन में सिपाही बन गए। वह बड़े देश भक्त , स्वाभिमानी एवं धर्माभिमानी थे। धर्म के प्रति उनके मन में बड़ी आस्था थी।


     20 मार्च 1857 को सैनिकों को नए प्रकार के कारतूस दिए गए। उन कारतूसों को गाय और सुअर की चर्बी से चिकना किया गया था। यह अंग्रेजो की एक चाल थी। भारतीय सैनिकों का धर्म भ्रष्ट करने की ताकि गाय और सुअर की चर्बी से चिकने किए गए कारतूस तो को मुंह से सैनिकों को खोलने पड़े।


     इसमें वे धर्म भ्रष्ट माने जाएंगे। उन्हें समाज से निकाल दिया जाएगा। तब भारतीयों का मनोबल गिरेगा और उन्हें मानसिक आघात पहुंचेगा। मंगल पांडे को जब इस षड्यंत्र का पता चला तो वह क्रोध से आग बबूला हो गए। परंतु भरी बंदूक लेकर सिपाहियों के सामने कूद पड़े।


     भारतीय सिपाहियों को ललकार कर उन्होंने गरजते हुए कहा-  "इन कारतूसों को गाय और सुअर की चर्बी से चिकना क्या गया है। इनका प्रयोग धर्म को भ्रष्ट करना है। हम स्वाभिमानी भारतीय वीर हैं । हमें अपने धर्म तथा राष्ट्रीय स्वाभिमान को भूलना नहीं चाहिए । 


     मंगल पांडे की इस ललकार का सैनिकों पर चमत्कारिक प्रभाव पड़ा। सब ने एक स्वर में कहा इन कारतूस  का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। इस पलटन का सार्जेंट अंग्रेज अधिकारी हडसन था। उसने सैनिकों को आदेश दिया-  "मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लो।" सार्जेंट की इस आज्ञा का भी सैनिकों ने पालन नहीं किया। यह सरासर अनुशासनहीनता थी। तब स्वंय मंगल पांडे को पकड़ने आगे बढ़ा। मंगल पांडे ने उसे गोली से उड़ा दिया।


      सार्जेंट हडसन की मृत्यु के बाद लेफ्टिनेंट ने उसे पकड़ना चाहा । पर वह भी तुरंत मौत के घाट उतार दिया गया। इस पर अनेक अंग्रेज सिपाही एक साथ उस पर टूट पड़े। चारो और मंगल पांडे पर गोलियों की बौछार होने लगी। गोलियां लगने से मंगल पांडे घायल हो गया और गिरफ्तार कर लिए गए ।  8 अप्रैल 1857 की प्रातः काल मंगल पांडे को फांसी दे दी गई । फांसी के तख्ते की ओर बढ़ते हुए उनके चेहरे पर ताजगी तथा मुस्कुराहट थी । अंग्रेज न्यायाधीश ने जब उसकी अंतिम अभिलाषा पहुंची तो उन्होंने गरजते हुए कहा- "देश को मेरा खून देना तथा कहना कि तुम्हें सौगंध है अंग्रेज..."।


     श्री मंगल पांडे अपना कथन पूरा भी नहीं कर पाए थे कि जल्लाद ने तख्ता हटा दिया। उसका शरीर फांसी पर झूल गया। एक महान सपूत स्वतंत्रता की बलिवेदी पर शहीद हो गया।


     1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया । इस संग्राम के प्रथम शहीद मंगल पांडे थे।


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