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योगेश्वर श्री कृष्ण || Yogeshwar Shri Krishna in Hindi

  योगेश्वर श्री कृष्ण 

Yogeshwar Shri Krishna in Hindi


 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवत भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।


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योगेश्वर श्री कृष्ण


      प्रत्येक देश और जाति में ऐसे समय आया करते हैं जब कि उसमें ऐसे पुरुष उत्पन्न होते हैं जो ईर्ष्या , द्वेष , स्वार्थ , कदाचार तथा कायरता के भावों से भरपूर होते हैं । वे समय उस देश और जाति के पतन के सूचक समय किसी महापुरुष का आविर्भाव हुआ करता है ।

      श्री कृष्ण का जन्म उत्तर भारत के शूरसेन देश की राजधानी मथुरा में वासुदेव एवं देवकी के यहां हुआ । श्रीकृष्ण गोकुल में नन्द के यहाँ पलने लगे । यह बचपन से ही बहुत होनहार थे । इन्होंने बाल्यावस्था में गो चराने के समय ग्वालों के साथ योगाभ्यास करते हुए अपने शारीरिक बल की वृद्धि कर ली । इस प्रकार गोकुल के गोपों के बीच रहकर श्रीकृष्ण दिनोंदिन चन्द्रमा के समान वृद्धि को प्राप्त होने लगे । 

     बाल्यकाल में ही उन्होंने शारीरिक बल का अद्भुत् परिचय दिया । उन्होंने यमुना के एक तालाब से एक भंयकर कालिया नामक विशाल नाग को मार भगाया । इसी तरह उस समय गोवर्धन पर्वत के उत्तर के वन में वनगर्दभ बड़ा उपद्रव मचाते थे , उनको भी इन्होंने मार डाला उन्होंने अपने शारीरिक बल से हिसंक जन्तुओं से वृन्दावन की रक्षा की और कंस के मल्लादि योद्धाओं को भी मार गिराया था । 

     मथुरा लौटने पर Yogeshwar Shri Krishna और बलराम का यज्ञोपवीत संस्कार करके सान्दीपन कश्यप के गुरुकुल में नियमपूर्वक शास्त्र वेद और शस्त्रविद्या के अभ्यास के लिए भेजा गया । वहाँ रहकर वे शीघ्र ही सांगोपांग वेद और धनुर्विद्या में पारंगत हो गए । गुरुकुल में वे अपने सहाध्यायी सुदामा आदि के साथ वन में समिधा , कुशा और फल आदि लाने के लिए तथा गोपालन के लिये जाते थे । वे सभी अपने गुरु की बड़ी भक्ति भाव से सेवा करते थे । 

     अस्त्र - शस्त्र की शिक्षा मिलने पर वह क्षत्रिय समाज में सर्वश्रेष्ठ वीर समझे जाने लगे । उन्हें कभी कोई परास्त न कर सका । वे कंस , जरासन्ध , शिशुपाल आदि तत्कालीन योद्धाओं से लड़े और उन सबको युद्ध में परास्त किया । सात्यकि और अभिमन्यु श्रीकृष्ण के प्रिय शिष्य थे । उन दोनों की भी महान् योद्धा के रूप में गणना की जाती है । महान् धनुर्धारी अर्जुन ने भी युद्ध की  बारीकियां श्री कृष्ण से ही सीखी थी । 

     सेनापतित्व ही योद्धा का वास्तविक गुण होता है । श्रीकृष्ण के सेनापतित्व का कुछ विशेष परिचय जरासंध युद्ध में मिलता है । उन्होंने अपनी मुट्ठी भर यादव सेना से जरासन्ध का सामना किया । श्रीकृष्ण द्वारा विभिन्न युद्धों मे जिस रणनीति का परिचय दिया वह उस समय के और किसी क्षत्रिय में नहीं देखी जाती । 

     श्रीकृष्ण की ज्ञानार्जनी वृत्तियां विकास की पराकाष्ठा को पहुंची हुई थी । वे अद्वितीय वेदज्ञ थे । उन्होंने वेद प्रतिपादित उन्नत , सर्वलोक हितकारी सब लोगों के आचरण योग्य धर्म का प्रसार किया । श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मोहनिवारण एवं कर्तव्यबोध के लिए गीता का उपदेश दिया । यह कर्मयोग के रूप में मानव मात्र के कल्याण के लिए एक अनुपम ग्रन्थ है । श्रीकृष्ण मन से श्रेष्ठ और माननीय राजनीतिज्ञ थे । इसी से युधिष्ठिर ने वेद व्यास के कहने पर भी श्रीकृष्ण से परामर्श किये बिना राजसूय यज्ञ में हाथ नहीं लगाया । स्वेच्छाधारी यादव और कृष्ण की आज्ञा में चलने वाले पाण्डव दोनों ही उनसे पूछे बिना कुछ नहीं करते थे ।

      जरासन्ध को मारकर कृष्ण की सब वृत्तियां चरम सीमा तक विकसित हुई थी । उनका साहस , उनकी फुर्ती और तत्परता अलौकिक थी । उनका धर्म तथा सत्यता अचल थी । स्थान - स्थान पर उनके शौर्य , दयालुता और प्रीति का वर्णन मिलता है । वे शान्ति के लिए दृढ़ता के साथ प्रयत्न करते थे और इस के लिए वे दृढ़प्रतिज्ञ थे । उन्होंने कौरवों की राजसभा में कहा था- हे दुर्योधन , वीरो के नाश के बिना ही कौरवों और पाण्डवों की शान्ति हो जाएमै यह याचना करने के लिये आया हूँ । 

     वे सबके हितैषी थे । केवल मनुष्यों पर ही नहीं , गोवत्सादि जीव जन्तुओं पर भी वह दया करते थे । वे स्वजन प्रिय थे । परलोक हित के लिए दुष्टाचारी स्वजनों का विनाश करने में भी कुण्ठित न होते थे । उन्होंने कंस मामा और भाई शिशुपाल का लिहाज न कर दोनों को ही दण्ड दिया । जब यादव लोग सुरापायी ( शराबी ) हो उदण्ड हो गए थे तो उन्होंने उनको भी दण्डित किया । 

     श्रीकृष्ण आदर्श मनुष्य थे । मनुष्य का आदर्श प्रचारित करने के लिये उनका प्रादुर्भाव हुआ था । वे अपराजित , विशुद्ध , पुण्यमय , प्रेममय , दयामय , दृढ़कर्मी , धर्मात्मा , वेदज्ञ , नीतिज्ञ , धर्मज्ञ , लोकहितैषी , न्यायशील , क्षमाशील , निर्भय , निरहंकारी , योगी और तपस्वी थे । वे मानुषी शक्ति से काम करते थे परन्तु उनमें जाकर देवत्व व योग अपनी पराकाष्ठा पर था । 


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