कम उम्र में ज्यादा वजन , बच्चो में कई रोगों का ख़तरा बढ़ा देता हैं overweight at a young age.
तेज रफ्तार जीवनशैली और अनियमित खान पान ने हाई ब्लडप्रेशर , तनाव , शुगर और हृदय सम्बंधी समस्याओं जैसे कई रोगों का खतरा बढ़ा दिया है । मोटापा भी इन समस्याओं में से एक है , जिसकी मौजूदगी सभी आयु - वर्ग के लोगों में दिखाई दे रही है । खासकर , बच्चों में बढ़ता वजन उनमें कई रोगों का खतरा बढ़ा देता है ।
आंकड़ों के अनुसार , बच्चों में मोटापे की समस्या चीन में सबसे ज्यादा है और भारत इस मामले में दूसरे नंबर पर आता है । भारत में करीब 1.50 करोड़ से अधिक बच्चे सामान्य से ज्यादा वजन वाले हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है । अमेरिका में करीब एक - तिहाई बच्चे सामान्य से ज्यादा वजन के हैं या मोटापे से ग्रस्त हैं । इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( आईएमए ) अनुसार , बच्चो में वयस्कों के मुकाबले मोटापे की समस्या ज्यादा तेजी से बढ़ रही है , जो किशोरों की शारीरिक और मानसिक सेहत को ज्यादा प्रभावित कर रही है ।
बीएमआई इंडेक्स को समझें-
ऐसा नहीं है कि भारी शरीर वाले सभी बच्चे मोटापे से ग्रस्त होते हैं । दरअसल , हम सबकी शारीरिक बनावट एक दूसरे से भिन्न होती है । समान उम्र के होने के बावजूद कुछ बच्चे दुबले - पतले , तो कुछ का डील - डौल भारी होता है । उनकी हड्डियों का ढांचा एक दूसरे से अलग होता है । पूरी तरह व्यस्क होने तक बच्चे विकास के अलग - अलग चरणों से गुजरते हैं , जिसके कारण भी उनके शरीर में अलग - अलग हिस्सों पर वसा जमा होती रहती है । कई बच्चों में बड़े होने के साथ ही यह संतुलित भी हो जाता है । इसी बात का असर उनकी कद - काठी पर पड़ता है ।
किशोर लड़के रोज लगभग एक लीटर तक कोल्ड ड्रिंक पी जाते हैं । कुछ अन्य कारण हैं-
असंतुलित खान - पान और अस्वस्थ जीवनशैली :-
पिज्जा और चिप्स जैसे फास्ट फूडे सैचुरेटेड फैटका भंडार होते हैं , जिनमें वसा और नमक की अत्यधिक मात्रा होती है । इसी तरह कोल्ड ड्रिंक और डिब्बा बंद जूस जैसे पेय पदार्थों में चीनी ज्यादा मात्रा में होती है । लंबे समय तक ऐसी चीजों का सेवन मोटापे को बढ़ाता है । बिना शारीरिक श्रम किए सारा दिन बैठे रहना भी मोटापे की समस्या को बढ़ाता है ।
आनुवंशिक कारणः-
यदि बच्चे के माता पिता या परिवार में मोटापे का इतिहास रहा है तो भी बच्चे का वजन ज्यादा होने की आशंका बढ़ जाती है । आनुवंशिक कारणों से भोजन के रूप में ग्रहण की गई वसा शरीर में जमा होकर धीरे - धीरे मोटापे में बदलने लगती है । माता - पिता की कद - काठी भारी है , तो भी बच्चे का वजन ज्यादा होने की आशंका होती है ।
सामाजिक और आर्थिक कारणः-
वजन संतुलित बनाए रखने के लिए कम खाने या डाइटिंग की बजाय सेहतमंद और पौष्टिक भोजन ज्यादा महत्त्वपूर्ण है आमतौर पर यह धारणा होती है कि कम भोजन खाने से वजन कम होता है । जबकि सच यह है कि लंबे समय तक ताजी चीजों की बजाय डिब्बाबंद या फ्रोजन फूड का सेवन ज्यादा करना और व्यायाम व कसरत में रुचि न लेना भी मोटापा बढ़ा सकता है ।
मनोवैज्ञानिक कारणः-
अगर माता - पिता अक्सर तनाव में रहते हों या घर का माहौल खुशनुमा ना हो तो उसका सीधा असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है । ऐसे माहौल में उनका विकास प्रभावित होने लगता है और वे अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं । किसी भावनात्मक संबल की गैर - मौजूदगी उनके भीतर तनाव बढ़ा देती है और वे भोजन में सुकून तलाशने लगते हैं । हर समय भूख लगना , ज्यादा मीठी और तली चीजें खाना , इसके खास लक्षण हैं ।
जानकारी का अभावः-
अधिकतर मामलों में पोषण की पूरी जानकारी ना होना सेहत को बिगाड़ देता है । फूड लेबल पर लिखी चीजों की जानकारी नहीं होने के कारण हम केवल विज्ञापन के आधार पर चीजें खरीदते और खाते रहते हैं नतीजा , बच्चे सेहतमंद होने की बजाय मोटापे के शिकार होने लगते हैं । वस्तुओं पर लिखे नमक , चीनी , वसा और अन्य पदार्थों की जानकारी होनी जरूरी है ।
अपनाएं ये उपाय :-
- बच्चों को ज्यादा से ज्यादा घर का बना ताजा खाना खाने के लिए प्रेरित करें ।
- उन्हें पोर्शन साइज का महत्व समझाएं और दूसरी सर्विंग लेने की बजाय सलाद ज्यादा मात्रा में खाने को कहें ।
- नाश्ते में डिब्बाबंद कॉर्नफ्लेक्स , ब्रेड या बिस्किट देने की बजाय दलिया , पोहा और इडली जैसी चीजें खाने को दें ।
- उनके आहार में दालें , पनीर , सोयाबीन विशेष रूप से शामिल करें , क्योंकि प्रोटीन की उच्च मात्रा होने के कारण ये खाद्य पदार्थ ज्यादा समय तक भूख नहीं लगने देते ।
- स्क्रीन टाइम को लेकर नियम बनाएं और शाम को कुछ देर पार्क में खेलने के लिए प्रेरित करें ।
- कोल्ड ड्रिंक या डिब्बाबंद जूस की बजाय घर में बना शर्बत और शिकंजी पीने को दें ।
- किशोरों को विशेष रूप से डाइटिंग के नुकसान के बारे में समझाएं और सेहतमंद खानपान की खूबियों के बारे में बताएं ।
- भूख लगने पर बाजार के स्नैक्स की बजाय घर में बनी भेल , भुनी मूंगफली , मेवे या चकली का नाश्ता दें ।
- रिफाइंड शुगर की बजाय शहद या गुड़ का इस्तेमाल करें ।
- बच्चों के लिए मील प्लानिंग इस प्रकार से करें कि उन्हें सभी पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में मिलें ।
मोटापे से जुड़ी समस्याएं:-
बदता वजन बहुत सी बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देता है , जो उम्र बढ़ने के साथ - साथ गंभीर रूप धारण कर सकती हैं ।
टाइप 2 डायबिटीजः-
मधुमेह का यह प्रकार मोटापे से ग्रस्त बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है । इसमें बच्चे का शारीरिक तंत्र उसके शरीर में मौजूद ग्लूकोज का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पाता , जिसका समय रहते इलाज ना किया जाए तो आंखों और किडनी के रोग होने के साथ - साथ तंत्रिका तंत्र के प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है ।
सांस की समस्या :-
अस्थमा रिसर्च एंड प्रैक्टिस जर्नल की एक रिपोर्ट के . अनुसार , अमेरिका के कुल अस्थमा पीड़ितों में से करीब 38 फीसदी मोटापे से ग्रस्त हैं । यह एक सांस जनित रोग है , जिसमें सांस नलिकाओं का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है । मोटापे के कारण यह समस्या और बढ़ सकती है ।
स्लीप एप्नियाः-
सामान्य से ज्यादा वजन वाले बच्चों की गर्दन के चारों ओर अतिरिक्त वसा जमा होने लगती है , जिसकी वजह से गर्दन मोटी हो जाती है । ऐसे में सोते समय उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है , जिससे नींद खुल जाती है । उनमें खर्राटों की समस्या भी होने लगती है ।
हाई ब्लड प्रेशरः-
असंतुलित खान पान से धीरे - धीरे शरीर में कोलेस्ट्रोल बढ़ने लगता है , जिससे धमनियों पर प्लॉक जमने लगता है , जो हाई ब्लड प्रेशर की समस्या भी पैदा कर सकता है । यदि लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहे तो धमनियां सख्त होकर संकरी होने लगती हैं और भविष्य में हार्ट अटैक या स्ट्रोक होने की आशंका बढ़ जाती है ।
आत्मविश्वास की कमी :-
मोटापा शारीरिक समस्याएं बढ़ाने के साथ बच्चों की मानसिक सेहत पर भी बहुत बुरा प्रभाव डालता है । खासकर , किशोरों में इसके बुरे परिणाम ज्यादा देखने को मिलते हैं । दोस्तों के बीच उनके ज्यादा वजन का मजाक बनना , रिश्तेदारों का टोकना , मनचाहे कपड़े ना पहन पाना , आकर्षक ना लगना और अपनी पसंदीदा गतिविधियों , जैसे - खेल या डांस में खुल कर भाग ना ले पाना , उनमें हीनता और अवसाद का भाव ला देता है ।
जोड़ों में दर्दः-
सामान्य से ज्यादा वजन शरीर के जोड़ों को नुकसान पहुंचाता है । छोटी उम्र में ही कूल्हों , घुटनों , टखनों और एड़ियों में दर्द के साथ कमर दर्द की समस्या घेर लेती हैं । ऐसे में गिर जाने या मामूली सी चोट लगने पर भी हड्डी टूट सकती है ।
नॉन अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज :-
इस बीमारी में बाहर से देखने पर किसी प्रकार के लक्षण दिखाई नहीं देते , लेकिन धीरे -धीरे लिवर पर फैट जमा होने लगता है , जो बड़े होने पर लिवर स्कार या लिवर खराब हो जाने के रूप में परेशानी पैदा कर सकता है ।
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