त्रिफला गुग्गल फायदे, सेवन विधि एवं सावधानियां
Triphala Guggul in Hindi
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Triphala Guggul |
त्रिफला गुग्गुल क्या हैं? (What is Triphala guggul ?) :-
त्रिफला गुग्गुल वात रोगों का शमन करने वाली एक बहुत ही असरदार आयुर्वेदिक औषधि हैं | इसमें त्रिफला (हरड, बहेड़ा, आंवला) तथा गुग्गुल होते हैं। जो की वात रोगों में लाभ देते हैं । त्रिफला गुग्गुल का प्रयोग भगंदर, कब्ज़, बवासीर, दर्द आदि रोगों के लिए किया जाता हैं |
यदि पथ्य को ध्यान में रखते हुए Triphala Guggul का सेवन किया जाए तो यह इन रोगों को शीघ्र समाप्त करती है ।
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त्रिफला गुग्गुल के घटक (Components of Triphala Guggul) :-
- त्रिफला चूर्ण
- पीपल का चूर्ण
- शुद्ध गुग्गुल
- घी
त्रिफला गुग्गुल बनाने की विधि (How to make Triphala Guggul) :-
ऊपर दि गयी सारी औषधियों को एकत्र कर के एक साथ कुट लें तथा फिर घी के साथ मिला कर गोलियां बना कर सुखा दे। हो गई त्रिफला गुग्गुल तैयार |
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त्रिफला गुग्गुल के फायदे (Benefits of Triphala Guggul) :-
वात रोगों में लाभकारी-
जब शरीर में उपस्थित वायु कई कारणों से प्रकुपित हो जाती हैं तो वात रोग उत्पन्न होने लगते हैं | यह औषधि सभी प्रकार के वात रोगों को समाप्त करती हैं | शरीर में होने वाला कोई भी दर्द आयुर्वेद के अनुसार वात रोग के कारण होता हैं | यह औषधि वात रोग से उत्पन्न होने वाले दर्द को समाप्त कर रोगी को राहत देती हैं |
भगंदर रोग में -
इस रोग को फिशर भी कहा जाता हैं | यह रोग गुदा सम्बंधित रोग होता हैं | इस रोग में मरीज के गुदा के अन्दर फोड़े या घाव हो जाते हैं | इससे मरीज को मल त्याग करने में बहुत अधिक पीड़ा होती हैं | यह घाव या फोड़े बड़े या छोटे हो सकते हैं |
यह स्थिति किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत ही पीड़ादायक होती हैं | इस स्थिति से बाहर निकलने के हेतु किसी भी व्यक्ति के लिए गुग्गुल एक उत्तम औषधि होती हैं |
सूजन में -
वात दोष के कारण व अन्य कारणों से शरीर के बाह्य या आंतरिक अंगो में आने वाली सूजन को इस आयुर्वेदिक औषधि का सेवन कर के समाप्त किया जा सकता हैं । सूजन किसी जीर्ण रोग या शरीर में जल भाग की वृद्धि जैसे और भी कई कारणों से हो सकती हैं |
बवासीर में-
बवासीर को पाइल्स भी कहा जाता हैं | इस रोग में रोगी के गुदा द्वार पर मस्से बन जाते हैं। यह रोग सामान्यतः कब्ज़, मोटापा और गर्भावस्था के समय मे होता हैं | बवासीर के मस्से दो तरह के होते हैं – बादी वाला मस्सा और खूनी मस्से। बादी वाले मस्से के दौरान मलाशय के आस पास सूजन, दर्द, मल त्यागने में दिक्कत होने लगती हैं । जो पूरे शरीर पर प्रभाव डालती हैं |
खूनी मस्सो के दौरान उन मस्सो में से खून और मवाद निकलने लगता हैं, जो बहुत अधिक तकलीफ पैदा करता हैं। इस गुग्गुल का सेवन करने पर रोगी को जल्द ही आराम मिलता हैं ।
कब्ज़ मे-
यह औषधि एक उत्तम रेचक, पाचक अग्नि बढ़ने वाली, पाचन के विकार को समाप्त करने वाली हैं | कब्ज़ पाचन विकार का ही एक प्रकार हैं जिसके कारण बवासीर जैसे रोग और शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं |
कमजोर पाचन तंत्र के साथ साथ भोजन की अनियमितता या गलत तरीके के खान पान आदि चीज़े कब्ज़ का कारण होती हैं | कब्ज़ होने पर यदि इस औषधि का सेवन किया जाये तो कब्ज़ से निजात मिल सकती हैं |
वातरक्त में-
शरीर में उपस्थित वायु और रक्त में विकार हो कर जब यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती हैं तो वातरक्त की समस्या आती हैं | यूरिक एसिड बढ़ जाने से यह शरीर के जोड़ो को प्रभावित करता हैं | जिससे उनमे सूजन, दर्द, चुभन और उनका लाल होना शुरू हो जाता हैं | यह दर्द एक जोड़े से दुसरे जोड़े में होने लगता हैं |
यह समस्या रोजमर्रा के कार्यो में बाधा डालती हैं | इस रोग को समाप्त करने के लिए इसका उपयोग बहुत फायदेमंद होता हैं |
कुष्ठ रोग में-
इस रोग का मुख्य कारण भी वात और रक्त का विकार होता हैं जिससे इसका असर त्वचा पर होने लगता हैं | आयुर्वेद में लगभग सभी प्रकार के त्वचा रोगों को कुष्ठ रोगों के अंतर्गत रखा गया हैं | यह त्वचा रोग जन्मजात, भौतिक कारणों से आदि के कारण हो सकते हैं | इन सभी रोगों से निपटने के लिए इस गुग्गुल का प्रयोग करना चाहिए |
अन्य रोगों में -
- कोलेस्ट्रोल के स्तर को नियंत्रित करें
- प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करेंवजन घटाएं
- तनाव से मुक्ति
- रक्त विकारएसिडिटी मेंआंतो के अल्सर आदि में ।
सेवन विधि :-
- 2-2 गोली सुबह शाम या तो त्रिफला क्वाथ के साथ या गो-मूत्र के साथ लें।
सावधानियाँ :-
- औषधि का सेवन अधिक मात्रा में नही करना चाहिये।|
- जीर्ण रोगी और गर्भवती महिला को इसका सेवन करने से किसी अच्छे चिकित्सक की सलाह जरुर लें|
- इसका सेवन करते समय अधिक खट्टे खाद्य पदार्थो के सेवन से बचे |
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