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शिव के दीवाने || MAHASHIVRATRI SPECIAL || MAHASHIVRATRI IN HINDI || SADHGURU.

शिव के दीवाने 

 MAHASHIVRATRI SPECIAL 

 MAHASHIVRATRI IN HINDI, SADHGURU.


शिव के दीवाने || MAHASHIVRATRI SPECIAL || MAHASHIVRATRI IN HINDI || SADHGURU.


     मल्टीनेशनल कंपनी हो या कोई किराना स्टोर , कहीं भी शिव की बात उठती है , तो अधिकतर युवाओं की बॉडी लैंग्वेज ही बदल जाती है । हर कोई उनकी बात करता है , मानो शिव का सबसे करीबी वही हो । नीलकंठ देव से युवाओ की इस आत्मीयता का राज क्या है ? महाशिवरात्रि ( 1 मार्च ) के अवसर पर बता रहे हैं सद्गुरु -

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   बच्चे हों , युवा हों , गृहस्थ हों या तपस्वी ... हर कोई शिव का दीवाना है । तो वह क्या है , जो शिव को इतना प्रिय बनाता है ? इसके पांच कारण हैं ।


1. परमानंद और सजगता का योग -
Yoga of ecstasy and awareness -

    शिव को लगातार एक ही समय में एक मतवाले और एक तपस्वी के रूप में दर्शाया गया है । वह एक योगी हैं अगर वह ध्यान में बैठते हैं तो निश्चल होते हैं । साथ ही , उसी समय में वह हमेशा मदोन्मत्त रहते हैं । मतलब यह नहीं है कि वह किसी स्थानीय बार में जाते हैं । योग का विज्ञान यह संभावना प्रदान करता है कि आप शांत रह सकते हैं और फिर भी हर समय परम आनंद की अनुभूति कर सकते हैं ।

     योगी आनंद के विरोधी नहीं हैं । वे केवल छोटे सुखों के लिए समझौता करने को तैयार नहीं हैं । वे लोभी हैं । वे जानते हैं कि यदि आप एक गिलास शराब पीते हैं , तो थोड़ी खुमारी चढ़ती है और फिर अगले दिन सुबह सिरदर्द और दूसरी चीजें हो जाती हैं । आप नशे का आनंद तभी ले सकते हैं , जब आप पूरी तरह से नशे में हों , लेकिन सौ प्रतिशत स्थिर और सजग हों । और प्रकृति ने आपको यह संभावना दी है । एक इजराइली वैज्ञानिक ने मानव मस्तिष्क के कुछ पहलुओं पर शोध करने में पाया कि मस्तिष्क में भांग के लाखों रिसेप्टर हैं ! शरीर इन रिसेप्टरों को . संतुष्ट करने के लिए एक रसायन यानी ' अपनी भांग ' विकसित कर सकता है । 

     जब उसने इस रसायन को पाया , जो रिसेप्टरों की ओर जाता , तो वह इसे एक नाम देना चाहता था । विभिन्न शास्त्रों पर शोध के बाद उसने पाया कि केवल भारतीय शास्त्र ही आनंद की बात करते हैं । इसलिए उसने इस रसायन को ' आनंदमाइड ' नाम दिया । तो , आपको बस ' आनंदमाइड ' का थोड़ा - सा उत्पादन करना है , क्योंकि आपके अंदर इसका एक पूरा बागीचा है !

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2. नियमों को तोड़ने में शिव सर्वश्रेष्ठ हैं -
Shiva is the best at breaking the rules -

     जब आप ' शिव ' कहते हैं , तो इसका धर्म से कोई लेना - देना नहीं है । आज दुनिया धर्म के आधार पर बंटी हुई है । इसकी वजह से जब आप कुछ बोलते हैं , तो ऐसा लगता है कि आप किसी ' संप्रदाय ' से जुड़े हैं । यह धर्म की बात नहीं है , यह आंतरिक विकास का विज्ञान है । यह अतिक्रमण और मुक्ति के बारे में है- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी आनुवंशिकी ( जेनेटिक्स ) क्या है , आपके पिता कौन थे , या आप किन सीमाओं के साथ पैदा हुए हैं या किन सीमाओं को प्राप्त किया है , यदि आप प्रयास करने के इच्छुक हैं , तो आप उन सभी सीमाओं को पार कर सकते हैं ।

     प्रकृति ने इनसानों के लिए कुछ नियम - कानून बनाए हैं , उन्हें उसी के भीतर रहना पड़ता है । भौतिक प्रकृति के नियमों को तोड़ना ही आध्यात्मिक प्रक्रिया है । इस अर्थ में हम नियमों को तोड़ने वाले लोग हैं और शिव नियमों को तोड़ने में सर्वश्रेष्ठ हैं । आप शिव की पूजा नहीं कर सकते , मगर आप उनके गैंग में शामिल हो सकते हैं । महाशिवरात्रि की यह रात केवल जागरण की रात न हो , बल्कि यह आपके लिए गहन जीवंतता और जागरूकता की रात भी बने । यह मेरी कामना व आशीर्वाद है कि आप इस अद्भुत उपहार का उपयोग करें , जो प्रकृति हमें इस दिन प्रदान करती है । जब हम ' शिव ' कहते हैं , तो इसका क्या अर्थ होता है- इसकी सुंदरता और परम आनंद को जान पाएंगे ।


3. सबके साथ घुल - मिल जाते हैं -
Get along with everyone -

    केवल देवता ही शिव की पूजा नहीं करते , राक्षस , भूत और सभी प्रकार के प्राणी उनकी पूजा करते हैं । भूत , प्रेत , पिशाच , राक्षस , दानव , वे सभी प्राणी , जिन्हें सबने अस्वीकार कर दिया- शिव ने उन्हें स्वीकार किया । कहते हैं कि जब उनका विवाह हुआ , तो उसमें सभी शामिल हुए ।    

    हर कोई , जो कुछ था , जो कुछ नहीं था- सभी शामिल हुए । सभी देवता और दिव्य प्राणी , सभी असुर , दैत्य , विक्षिप्त प्राणी , पिशाच और भूत- सभी आए । आमतौर पर ये लोग आपस में नहीं मिलते । लेकिन शिव के विवाह में सब उपस्थित थे । चूंकि वह ' पशुपति ' थे , पशु प्रकृति के ईश्वर , तो सभी पशु आए । और निश्चित रूप से , सर्प भी इस अवसर से वंचित नहीं होना चाहते थे , तो वे सब भी आए । पक्षी और कीड़े भी इसे छोड़ना नहीं चाहते थे , इसलिए वे भी अतिथि थे । 

     इस विवाह में सभी प्राणी आए । इस कथा का अभिप्राय यह है कि जब हम उनके अस्तित्व की बात करते हैं , तो हम एक कुलीन , सभ्य व्यक्ति की बात नहीं कर रहे हैं , बल्कि जीवन के साथ पूर्ण एकत्व वाले एक आदि व्यक्तित्व की बात कर रहे हैं । वह शुद्ध चेतना हैं , पूरी तरह से आडंबर रहित , कभी दोहराव नहीं , हमेशा सहज , हमेशा नवप्रवर्तनशील ( युक्तिसंपन्न ) और निरंतर रचनात्मक । वह स्वयं ही जीवन हैं ।

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4. सृजन का नृत्य -
Dance of creation -

    नटेश या नटराज- शिव का नर्तक रूप शिव के सबसे अहम रूपों में से एक है । जब मैं स्विट्जरलैंड में सर्न गया था- जहां सभी परमाणुओं का विखंडन किया जाता है- तब मैंने देखा कि प्रवेश द्वार पर नटराज की मूर्ति स्थित है , क्योंकि उन्होंने इस बात को पहचाना कि मानव संस्कृति में इससे ज्यादा नजदीक ऐसा कुछ भी नहीं है , जो वे अभी कर रहे हैं । यह सृजन के उल्लास का प्रतिनिधित्व करता है , सृजन का नृत्य जिसने स्वयं को शाश्वत शांति से निर्मित किया है ।


5. वह पूर्ण पुरुष हैं , मगर उनमें स्त्रीत्व भी है-
He's a perfect man, but he also has femininity-

     शिव पूर्ण पुरुष का प्रतीक हैं , लेकिन आप शिव को ' अर्द्धनारीश्वर ' रूप में देखेंगे कि उनका अद्धश एक पूर्ण रूप से विकसित स्त्री है । मैं आपको यह कहानी बताता हूं कि क्या हुआ था । शिव परमानंद की स्थिति में थे और इस वजह से पार्वती उनकी ओर आकर्षित हुईं । 

     पार्वती ने उन्हें लुभाने के लिए बहुत कुछ किया और हर तरह के उपक्रम किए और उन्होंने विवाह कर लिया । जब उनका विवाह हो गया तो , • शिव स्वाभाविक रूप से अपने अनुभवों को साझा करना चाहते थे । पार्वती ने कहा , ' यह अवस्था , जिसमें आप स्वयं अपने भीतर हैं , मैं भी इसका अनुभव करना चाहती हूं । मुझे क्या करना होगा ? मुझे बताइए । मैं किसी भी तरह की तपस्या करने को तैयारहूं । ' शिव मुस्कुराए और बोले , ' तुम्हें कोई बड़ी तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है । तुम बस आकर मेरी गोद में बैठो । ' पार्वती आईं और बिना किसी प्रतिरोध के उनकी गोद में बायीं ओर बैठ गईं । चूंकि वह बहुत उत्सुक थीं , चूंकि उन्होंने स्वयं को पूरी तरह से उनके हाथों में सौंप दिया था , शिव ने पार्वती को अपने भीतर समाहित कर लिया और वह उनका अद्धांश हो गईं । 

     आपको यह समझने की जरूरत है कि शिव को अगर पार्वती को अपने शरीर में समायोजित करना है , तो उन्हें अपना आधा हिस्सा त्यागना पड़ेगा । तो उन्होंने अपने आधे हिस्से का त्याग कर दिया और पार्वती को शामिल कर लिया । ' अर्द्धनारीश्वर ' की कहानी ये है । यह मूल रूप से ये अभिव्यक्त करने की कोशिश है कि आपके भीतर पुरुष और स्त्री समान भाग में हैं । और जब उन्होंने पार्वती को अपने अंदर शामिल कर लिया , वह परमानंद से भर गए । 

     कहने का अभिप्राय यह है कि यदि आंतरिक पुरुषत्व और स्त्रीत्व मिलते हैं , तो आप परमानंद की शाश्वत अवस्था में होते हैं । यदि आप इसे बाहर से करने की कोशिश करते हैं , तो यह कभी नहीं टिकता और इससे जो परेशानियां पैदा होती हैं , वे एक निरंतर चलने वाला ड्रामा हैं !


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