हम क्यों करते है चरण स्पर्श ?
हमारी संस्कृति में चरण स्पर्श करने की परम्परा है।
चरण स्पर्श, चरण वंदन, चरण स्तुति , चरण
पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाते है, इनके सुपरिणाम
अवश्य मिलते हैं। जिसे हम चरण स्पर्श करके बड़ा मानते है
वह बड़ा ही रहता है। चाहे वह आशीर्वाद बोलकर दे या
मौन स्वीकृति से दे।
चरण स्पर्श का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विज्ञान में न्यूटन ने एक नियम का उल्लेख किया है
कि इस भौतिक संसार में सभी वस्तुएं ‘गुरुत्वाकर्षण’ के
नियम से बंधी है और गुरुत्व भार सदैव आकृषात करने वाले की तरफ जाता है। हमारे शरीर में भी यह नियम है। सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिण ध्रुव
माना जाता है अर्थात् गुरुत्व ऊर्जा का चुम्बकीय
ऊर्जा या विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा सदैव उत्तरी ध्रुव
से प्रवेश कर दक्षिण ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर
अपना चक्र पूरा करती है।
इसका आशय यह हुआ कि मनुष्य के शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिण ध्रुव
(पैरों) की ओर प्रवाहित होती है और दक्षिण ध्रुव पर
यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है, यहां ऊर्जा का केन्द्र बन जाता है।
शरीर क्रिया को वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर
लिया है कि हाथों और पैरों की अंगुलियों और
अंगूठों के पोरों (अन्तिम सिरा) में यह
ऊर्जा सर्वाधिक रूप से विद्यमान रहती है तथा यही से
आपूर्ति और मांग की प्रक्रिया पूर्ण होती है। पैरों से
हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने
की प्रक्रिया को ही हम ‘चरण स्पर्श’ करना कहते हैं।
चरण स्पर्श से पहले पैर पखारने का महत्त्व
प्राचीनकाल में जब ऋषि , मुनि , योगी
इत्यादि किसी राज दरबार में आते थे तो राजा पहले
शुद्ध जल से उनके चरण धोता (चरण पखारना) था,
तत्पश्चात् चरण स्पर्श की परम्परा पूर्ण करता था।
चरण स्पर्श से पहले चरण धोने के पीछे सम्भवतः यह
वैज्ञानिक कारण रहा होगा कि चरणों में एकत्रित
विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा चलकर आने से अत्यधिक
तीव्रता से प्रवाहित होती है और गर्म रहती है। चरण
धोने से यह सामान्य अवस्था में आ जाती है और
जो व्यक्ति चलकर आता है उसकी मानसिक और
शारीरिक थकान के कारण वह एकाएक शुभाशीषर्वाद
देने की स्थिति में नहीं होता है, जल से उसका सम्पर्क
आने से वह भी सामान्य स्थिति में आ जाता है। अब
चरण स्पर्श पूर्णतः सकारात्मक स्थिति में होगा।
कैसे करे चरण स्पर्श
चरण स्पर्श करते समय यदि बायें हाथ से बायें पैर और
दायें हाथ से दायें पैर का स्पर्श किया जाता है
तो सजातीय ऊर्जा का प्रवेश, सजातीय अंग से
तेजी से और पूर्ण रूप से होता है जबकि इसके विपरित
करने से ऊर्जा प्रवाह अवरोध या रूकावट के साथ
होता है।
एक और पहलू यह है कि जब व्यक्ति चरण स्पर्श करता है तो जिस व्यक्ति के चरण स्पर्श किए जाते है। उसके हाथ सहज ही चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति के सिर पर जाते हैं और उसके सहस्रार चक्र से स्पर्श होते है।
सहस्रा रचक्र से सक्रियता उत्पन्न होती है। इससे ज्ञान ,
बुद्धि और विवेक का विकास सहज ही होने
लगता है, जो ऊर्जा, उत्साह, शक्ति और दीर्घायु
प्रदान करता है जिस शरीर में सकारात्मक
ऊर्जा का प्रवाह शरू हो जाता ।
यह भी पढ़े 👇
हमारी संस्कृति में चरण स्पर्श करने की परम्परा है।
चरण स्पर्श, चरण वंदन, चरण स्तुति , चरण
पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाते है, इनके सुपरिणाम
अवश्य मिलते हैं। जिसे हम चरण स्पर्श करके बड़ा मानते है
वह बड़ा ही रहता है। चाहे वह आशीर्वाद बोलकर दे या
मौन स्वीकृति से दे।
![]() |
touch feet |
चरण स्पर्श का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विज्ञान में न्यूटन ने एक नियम का उल्लेख किया है
कि इस भौतिक संसार में सभी वस्तुएं ‘गुरुत्वाकर्षण’ के
नियम से बंधी है और गुरुत्व भार सदैव आकृषात करने वाले की तरफ जाता है। हमारे शरीर में भी यह नियम है। सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिण ध्रुव
माना जाता है अर्थात् गुरुत्व ऊर्जा का चुम्बकीय
ऊर्जा या विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा सदैव उत्तरी ध्रुव
से प्रवेश कर दक्षिण ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर
अपना चक्र पूरा करती है।
इसका आशय यह हुआ कि मनुष्य के शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिण ध्रुव
(पैरों) की ओर प्रवाहित होती है और दक्षिण ध्रुव पर
यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है, यहां ऊर्जा का केन्द्र बन जाता है।
शरीर क्रिया को वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर
लिया है कि हाथों और पैरों की अंगुलियों और
अंगूठों के पोरों (अन्तिम सिरा) में यह
ऊर्जा सर्वाधिक रूप से विद्यमान रहती है तथा यही से
आपूर्ति और मांग की प्रक्रिया पूर्ण होती है। पैरों से
हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने
की प्रक्रिया को ही हम ‘चरण स्पर्श’ करना कहते हैं।
![]() |
चरण स्पर्श |
चरण स्पर्श से पहले पैर पखारने का महत्त्व
प्राचीनकाल में जब ऋषि , मुनि , योगी
इत्यादि किसी राज दरबार में आते थे तो राजा पहले
शुद्ध जल से उनके चरण धोता (चरण पखारना) था,
तत्पश्चात् चरण स्पर्श की परम्परा पूर्ण करता था।
चरण स्पर्श से पहले चरण धोने के पीछे सम्भवतः यह
वैज्ञानिक कारण रहा होगा कि चरणों में एकत्रित
विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा चलकर आने से अत्यधिक
तीव्रता से प्रवाहित होती है और गर्म रहती है। चरण
धोने से यह सामान्य अवस्था में आ जाती है और
जो व्यक्ति चलकर आता है उसकी मानसिक और
शारीरिक थकान के कारण वह एकाएक शुभाशीषर्वाद
देने की स्थिति में नहीं होता है, जल से उसका सम्पर्क
आने से वह भी सामान्य स्थिति में आ जाता है। अब
चरण स्पर्श पूर्णतः सकारात्मक स्थिति में होगा।
कैसे करे चरण स्पर्श
चरण स्पर्श करते समय यदि बायें हाथ से बायें पैर और
दायें हाथ से दायें पैर का स्पर्श किया जाता है
तो सजातीय ऊर्जा का प्रवेश, सजातीय अंग से
तेजी से और पूर्ण रूप से होता है जबकि इसके विपरित
करने से ऊर्जा प्रवाह अवरोध या रूकावट के साथ
होता है।
एक और पहलू यह है कि जब व्यक्ति चरण स्पर्श करता है तो जिस व्यक्ति के चरण स्पर्श किए जाते है। उसके हाथ सहज ही चरण स्पर्श करने वाले व्यक्ति के सिर पर जाते हैं और उसके सहस्रार चक्र से स्पर्श होते है।
सहस्रा रचक्र से सक्रियता उत्पन्न होती है। इससे ज्ञान ,
बुद्धि और विवेक का विकास सहज ही होने
लगता है, जो ऊर्जा, उत्साह, शक्ति और दीर्घायु
प्रदान करता है जिस शरीर में सकारात्मक
ऊर्जा का प्रवाह शरू हो जाता ।
यह भी पढ़े 👇
योगदर्शन में पांच प्रकार के क्लेश || Five types of tribulations in Yogadarshan
योग क्या करता है || What happens with yoga?
0 टिप्पणियाँ
कृपया comment box में कोई भी spam link न डालें।