Ticker

6/recent/ticker-posts

Sardi Me Baccho Ki Dekhbhal Kaise Kare || सर्दियों में इन उपायों से बच्चों को रखे स्वस्थ

 

 सर्दियों में इन उपायों से बच्चों को रखे स्वस्थ

        शरद ऋतु में शीत जनित व्याख्या मुख्य रूप से सर्दी, जुकाम,  छीके आना सामान्य है जो लगभग सब को परेशान करता है, पर बच्चों में खांसी, नजला, टॉन्सिलाइटिस सामान्य हो ही जाता है । यदि हम उपरोक्त लक्षणों वह रोगों को समय पर नहीं नियंत्रण करते हैं तो बहुत कम समय में यह रोग ज्वर , काली खांसी , फ़लू ,श्वास,  अमोनिया जैसे रोग में परिवर्तित हो सकते हैं। जो आयु एवं बल का तो क्षरण करते ही हैं साथ ही इन लोगों की तीव्रता घातक भी हो सकती हैं। शरद ऋतु का सबसे अधिक दुष्प्रभाव कमजोर व्यक्तियों, बच्चों व बुजुर्गों पर होता है। ऋतू के अनुसार उसके दुष्प्रभाव के रोकथाम के तरीकों को Sardi Me Baccho Ki Dekhbhal Kaise Kare  प्रस्तुत कर रहे हैं।

                                

Sardi Me Baccho Ki Dekhbhal Kaise Kare ||  सर्दियों में इन उपायों से बच्चों को रखे स्वस्थ
COLD BABY


     भारतवर्ष में छह ऋतु का चक्र भगवान का विशिष्ट वरदान है। हर रितु की अलग दिनचर्या अलग खानपान अलग-अलग  पत्तियां हमारे देशों द्वारा निर्देशित है। रोग का प्रमुख कारण है ऋतु अनुसार उचित आहार-विहार का सेवन ना करना। इससे हम उस ऋतु से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ से वंचित रह जाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि कुछ साधारण परंतु अचूक उपचारों को अपनाकर हम रोगों से रोकथाम की प्रक्रिया को अवश्य समझे व समझाएं।


आहार-विहार के माध्यम से प्राथमिक बचाव

  • ‌ शरद ऋतु के प्रारंभ में सीत हवाओं के कारण तापमान में कमी आ जाती है। इसलिए सुबह व शाम के समय विशेषत हल्के गर्म कपड़े बच्चों को जरूर पहनाए। खासकर सिर पर टोपी तथा पैरों में मौजे होने ही चाहिए।

  • ‌ अधिक तेज हवा ठंड में बारिश में बच्चों को बाहर न जाने दे ।
  • ‌ सुबह के समय अधिक ठंड व धुंध के समय तथा रात्रि में अधिक ठंड होने पर  खासकर श्वास प्रणाली के रोगों से ग्रसित  बच्चों को बाहर न जाने दे।

  • ‌ अगर अधीक  हवा में बाहर जाना जरूरी हो तो कानों को ढके ताकि सीधी हवा चेहरे व सिर पर न लगे।

  • ‌ गर्मी के बाद शरद ऋतु में प्यास की तीव्रता का अनुभव कम हो जाता है । लेकिन शरीर में पानी की मात्रा की आवश्यकता लगभग पहले जैसे ही बनी रहती है। इसलिए पानी प्रचुर मात्रा में लें तथा हल्का सुखोषण जल ही ले।

  • ‌ जिन्हें कफजन्य रोग जैसे -सर्दी, खांसी, जुकाम आदि जल्दी होते हैं, उन्हें केला, मैदा से बने पदार्थ व चावल आदि कफ़ वर्धक खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। उसके लिए रात्रि को दही वह छाछ भी हानिकारक होती है।

  • ‌ सूर्य के धूप का का यथासंभव अधिक मात्रा में सेवन करें। इससे कफजनित रोगों में आराम तो मिलता ही है। इसके अलावा हड्डियों में विटामिन डी की भी मात्रा पूरी हो जाती है।

आहार संबंधी सावधानियां :-

     सर्दी के मौसम में हमें सामान्य आहार के साथ बच्चों के आहार में दो विशेष परिवर्तन करने चाहिए विशेष परिवर्तन करने चाहिए  ।

  • एक तो ऐसे आहार लेने  चाहिए जो पोस्टिक हो शरीर की सभी सातों प्रकार की धातुओ के वर्धक हो ।
  • ‌ दूसरे ऐसे आहार जो शरीर में शीत जनित व्याधियों को उत्पन्न ही न होने दें।

     इन दोनों उपरोक्त श्रेणियों के आधार पर निम्न पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है, जो शरद रोगों के लिए घरेलू उपचार का कार्य भी भी भी करेंगे ।

  • शरीर में तरल पदार्थों की मात्रा प्रचूर बनाए रखें । इसके लिए शिशिर वह शरद ऋतु में नियमित रूप से हल्का गर्म पानी, आंवले का शरबत, फलों का जूस, सब्जियों का गर्म सुप  आदि का प्रयोग करें।

  • ‌ गर्म दूध में हल्दी, काली मिर्च, मुनक्का आदि उबाल कर लेना लाभदायक है।

  • ‌ गर्म दूध में खजूर , सूखे मेवों का सेवन , केसर का सेवन अति लाभकारी है ।

  • ‌ बच्चों को चवनप्राश, शिलाजीत, अश्वगंधा, केसर आदि नियमित रूप से प्रयोग कराएं ।

  • ‌ शरद ऋतु में बादाम 100 ग्राम, कालीमिर्च 5 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम, व छोटी पीपली व तेजपत्र पत्र दो-दो ग्राम कूटकर चूर्ण करके उसे डिब्बे में बंद कर रख ले। रात्रि को गर्म दूध के साथ एक चम्मच नियमित रूप से दें। इससे टॉन्सिल का बढ़ना, दमा आदि रोग  नहीं होत ।

  • ‌ बच्चों को जंक फूड एवं फास्ट फूड देने की वजह सर्दियों में तिल गुड़ से निर्मित पदार्थ, सूखे मेवों से बने लड्डू, किशमिश , मुनक्का आदि के पदार्थ खिलाएं ।

  • ‌ रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाने के लिए साथ ही शरीर में विटामिन सी नेत्र दृष्टि आदि बढ़ाने के लिए फलों के जूस का प्रयोग करें, पर ध्यान रहे कि जूस ताजा वह स्वस्थ हो तथा यथासंभव दोपहर के समय धूप में सेवन करें।  इस मौसम में मुख्यता सेब, गाजर, चुकंदर, अनार, मूली, अदरक, संतरा , मौसमी व आंवला आदि फलों के जूस का सेवन करें ।

आयुर्वेदिक उपचार:-

     बच्चों को आने वाली खांसी व बुखार में तुरंत एंटीबायोटिक देना यह कोई सही उपचार नहीं है। कई बार देखने में आया है कि छोटे-छोटे बच्चों को एक दो महीने में  लगभग तीन - तीन बार एंटीबायोटिक दवाइयां दे दी जाती है , जो सोम बच्चों की सेहत व रोग प्रतिरोधक रोग प्रतिरोधक क्षमता से खिलवाड़ करने जैसा है । विदेशों में स्वास्थ्य विभाग की नीति है कि अति आवश्यक न हो तो 6 महीने में से पहले दोबारा एंटीबायोटिक कोर्स नहीं दिया नहीं दिया जाता। जबकि हमारे देश में ऐसे कोई मानक नहीं है।  इससे बाद में बच्चों के जीवन में कई परेशानियां होती देखी जाती है।
    शीत जनित कोई भी रोग होने पर निम्न ओषधियाँ अवश्य ले।

  • श्वासारि क्वाथ, मुलेठी क्वाथ को काढ़ा बना कर कर ले ।

  • दिव्य श्वासारि रस, अभ्रक भस्म, ददिव्या प्रवाल पिष्टी, त्रिकुटा चूर्ण, सितोपलादि चूर्ण को गुड़िया बनाकर सुबह-शाम खाली पेट ले

  • चमनप्राश, गिलोय वटी आदि निरापद ओषधियाँ है जो स्वास्थ्य बच्चों एवं प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को भी नियमित रूप से ले लेनी चाहिए  इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है ।

  •  अधिक लंबे समय तक खांसी, बुखार, भूख न लगना, वजन कम होना, सांस लेने में कठिनाई हो तो तुरंत वैध को दिखाएं । यह गंभीर रोग जैसे निमोनिया, दमा , टीवी आदि रोगों के लक्षण भी हो सकते हैं।

  • जुखाम, नाक की हड्डी बढ़ना जैसे रोगों में रात को सोते समय बच्चों की नाक बंद हो जाती है। इसके लिए सोते समय बादाम रोगन हल्का गर्म करके नासिका में लगाए तथा पैरों में सरसों  के तेल की मालिश करें।

विशेष सावधानियां:-

  • कमरे का तापमान अति गर्म तथा अति ठंडा न रखें तथा कभी भी रूम में हीटर, अंगीठी पूरे बंद कमरे में चलाकर न सोए।


योग व प्राणायाम:-

  • सर्दी में मुख्यतः रक्त वाहिकाओं के संकुचन से हृदय तथा स्वास रोग होने की संभावना बढ़ जाती है । इसलिए इस मौसम में योग व प्राणायाम करने से शरीर में रक्त का संचार तथा ऑक्सीजन की आपूर्ति सुचारू रूप से होने लगती हैं। बच्चों को हल्का व्यायाम, खेलकूद आदि इस मौसम में जारी रखने चाहिए।
  • इसमें बच्चों को स्वामी रामदेव जी द्वारा निर्देशित योगिक जोगिंग, सूर्य नमस्कार, सर्वांगासन, शीर्षासन, त्रिकोणासन तथा स्वामी जी द्वारा निर्देशित आठों प्राणायाम का नियमित अभ्यास करना चाहिए।
  • स्वसन तंत्र के रोगों में विशेष लाभ देने के लिए योग ऋषि द्वारा निर्देशित भस्त्रिका, कपालभाति प्राणायाम, अनुलोम विलोम प्राणायाम, अधिक लाभकारी है। विशेषता उज्जाई प्राणायाम शोषित रोगों में रामबाण की तरह कार्य करता है ।
  • सम्यक धूप का सेवन , नियमित योग, व्यायाम, प्राणायाम समय अनुसार पौष्टिक अन्न का सेवन वह थोड़ी सी सावधानियों के साथ शिशिर शरद एवं हेमंत ऋतु में आप अपनी सेहत के खजाने को भरा- पूरा करें। क्योंकि यह ऋतुएँ विशेषत स्वास्थ्यवर्धक होती हैं । इसी कारण हमारे ऋषि मुनि "जीवेम शरद: शतम्" की कामना करते हैं  हम सभी 100 वर्ष तक शरद आदि ऋतुओं का सेवन करते रहने के प्रति संकल्पित है ।

    उपरोक्त उपयोग के सेवन से रोगों की रोकथाम करें एवं निरोग बलशाली ऊर्जा से भरपूर जमीन जीवन व्यतीत करें अगर आपको हमारी यह जानकारी अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों फैमिली तथा रिश्तेदारों के साथ अवश्य शेयर करें ताकि वह भी सर्दी में इन उपायों से अपने बच्चों को तथा अपने आपको स्वस्थ रख सके।


यह भी पढ़े 👉 

ज्यादा चीनी खाने से हो सकता है सेहत को नुकसान, जरूर जानिए || Eating too much sugar can cause health damage, know

Liver diseases || यकृत लिवर रोग कारण व निवारण 
 जानिए आपका शरीर कैसा हैं? आयुर्वेद के अनुसार , वात, पित्त, कफ त्रिदोष

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ