Asthama Treatment- अस्थमा की यौगिक चिकित्सा
दमा को मनोदहेक रोग कहा जाता है। इस समय में दमा के रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। योगिक एक प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार दमा का कारण पेट की खराबी है। भोजन का समुचित रूप से पांचन न होने पर वह पक्कास्य में दूषित रस उत्पन्न कर श्वास प्रणाली में बांधा उत्पन्न करता है । फलस्वरुप सांस उखड़ने की स्थिति उत्पन्न होने लगती हैं। इसी को दमा कहते हैं । कई बार लगातार बने रहने वाले जुखाम तथा खांसी आदि से भी दमा के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। माता-पिता को दमा होने पर संतान को भी यह रोग होने की आशंका रहती है। कई बार वातावरण का प्रभाव एवं अन्य कई रोग भी दमा का कारण बन सकते हैं।
दमा के दौरे के समय सांस लेने में कष्ट , छाती में भारीपन, पेट फूलना, सारे शरीर में बेचैनी तथा घबराहट, जुखाम, कफ़ , दुर्बलता यह सारे दमा के लक्षण हैं।
यह भी जाने👇
किडनी रोग एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा || Kidney Disease and Ayurvedic Medition
प्राथमिक चिकित्सा
दमा के रोगी को सर्वप्रथम अपने पेट और श्वास प्रणाली को साफ करने का उपाय करना चाहिए। इसके लिए उपवास सर्वोत्तम तरीका है। एक-दो दिन तक उपवास पर रहकर फिर क्रम से रस आहार एवं फलाहार पर लेना चाहिए। इसके बाद सामान्य भोजन जिसमें चोकर सहित मोटे आटे की रोटी एवं लौकी की सब्जी लेनी चाहिए। उपवास के दिनों में प्रतिदिन गुनगुने पानी का एनिमा लेना चाहिए । कटी स्नान, गरम पादस्नान तथा छाती की लपेट जैसी प्राकृतिक उपचार दमा के रोगियों को अतिशीघ्र लाभ पहुंचाते हैं। दौरे की अवस्था में गर्म पाद स्नान देने से तुरंत लाभ होता है। ऐसे रोगियों का पेट साफ रहना जरूरी है। ठंडे एवं गरिष्ठ भोजन से बचते हुए रात को भोजन बहुत हल्का लेना चाहिए । विशेष यह रहे कि रात का भोजन सूर्यास्त से पहले ही ले लिया जाए।
योग से करें दमा का का उपचार
यदि आसन हो सकते हो तो इस रोग में ताड़ासन, कटिचक्रासन, सर्वांगासन, चक्रासन, भुजंगासान, धनुरासन, वज्रासन , उष्ट्रासन, गोमुखासन, मत्स्यासन, अर्धमत्स्येंद्रासन तथा शवासन उपयोगी है। जैसे-जैसे शक्ति बढ़ती जाए आसनों को बर्दाश्त करने की क्षमता विकसित होती जाए वैसे- वैसे आसनों को बढ़ाएं।
प्राणायाम में कपालभाति, भस्त्रिका, सूर्यभेदी का अभ्यास करें, और आधे घंटे का शवासन अवश्य करें। शरीर को जितना शिथिल तथा शांत करेंगे उतनी जल्दी रोग दूर होगा।
प्रातकाल खाली पेट कुंजल, जल नेति तथा वस्त्र धोती का अभ्यास करने से भी आराम मिलता है। लेकिन उपरोक्त सारी क्रियाएं दमा के रोगी को किसी विद्वान योग शिक्षक के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए। पर्याप्त लाभ मिल सके और कोई हानि न हो सके।
यह भी जाने👇
Liver diseases || यकृत लिवर रोग कारण व निवारण
पथ्य अपथ्य
घरेलू प्रयोग
साधारण स्वास रोग होने पर सुहागा का खुला और मुलहठी को अलग-अलग खरल कर या कूट पीसकर मैदा की तरह बारीक चूर्ण बना लें फिर दोनों ऑडियो को बराबर वजन मिलाकर किसी शीशी में रख लें आधा ग्राम से 1 ग्राम तक दवा दिन में दो-तीन बार शहद के साथ चाटे या गर्म जल के साथ ले बच्चों के लिए एक रत्ती की मात्रा या आयु के अनुसार कुछ अधिक दे दही केला चावल तथा ठंडे पदार्थों का सेवन न करें
- गेहूं के हरे पौधों का रस दो चम्मच की मात्रा में नित्य पिएं।
- चार चम्मच मेथी एक गिलास पानी पानी में उबालें फिर उसे छानकर पी जाएं।
- हर सिंगार की छाल का चूर्ण पान में रखकर खाने से दमा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
- तुलसी और अदरक का रस 3-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ ले।
- 4 लोंग, काली मिर्च 4 तथा तुलसी के 4 पत्ते सभी की चटनी बनाकर नित्य खाएं ।
- सफेद प्याज का रस दो चम्मच तथा शहद 2 चम्मच दोनों को मिलाकर पिए।
- शलजम का एक कप रस , गाजर का एक कप रास, पत्ता गोभी का एक कप रस को मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करें दमा के रोगियों के लिए यह एक पोस्टिक औषधि है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया comment box में कोई भी spam link न डालें।