नाड़ियाँ : प्रकार एवं कार्य
Pulse types and functions
नाड़ी शब्द ' नाड ' शब्द से निकलता है जिसका अर्थ है ' तृण या वनस्पति का पोला , खोखला डंठल ' । नाड का शब्दार्थ ' ध्वनि ' या ' तरंग ' भी है । नाड़ी का मतलब शब्दकोश में लिखा है कि शरीर के अंदर माँस और तंतुओं से मिलकर बनी हुई बहुत सी नालियों में से कोई एक या हर एक जो हृदय से शुद्ध रक्त लेकर सब अंगों में पहुँचाती है । आधुनिक विज्ञान के ( नस ) रेशे ( फाइबर्स ) का एक समूह है जो शरीर के एक भाग से प्रणोदों तंत्रिका अनुसार ( एम्पल्सेस ) को लेकर दूसरे भाग में पहुँचाता है । प्रत्येक रेशा ( फाइबर ) एक तंत्रिका कोशिका ( नर्व सेल ) का तंत्रिकाक्ष ( एक्सॉन ) होता है । योग के अनुसार नाड़ी , धमनियाँ या नलिकाएँ वे हैं जो वायु , जल , रक्त और अन्य पोषक पदार्थों के साथ पूरे शरीर में आवागमन का काम करती हैं । प्राणायाम क्रियाओं में इन्हीं नाड़ियों का उपयोग किया जाता है ।
नाड़ियाँ बहुत छोटी छोटी होती हैं और नाड़ी -चक्र समस्त तीनों शरीर - स्थल शरीर , सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर में परस्पर मिली हुई गुच्छिकाएँ होती हैं । वैज्ञानिक और चिकित्सक सूक्ष्म और कारण शरीर के अस्तित्व को नकारत रहे हैं । परंतु हमारे महान ज्ञानी ऋषि मुनियों ने इनको जाना , आत्मसात् किया और इनका विस्तृत विवेचन भी किया । वराहोपनिषद में लिखा है कि नाड़ियाँ शरीर में पैरों के तलवों से लेकर सिर के ऊर्ध्वभाग तक व्याप्त हैं । इनमें ही प्राण रहता है जो जीवन का श्वास है । उसी में आत्मा का निवास होता है जो शक्ति का आवास है और चेतन तथा पुद्गल जगत का निर्माता है ।
अन्य शास्त्रों के अनुसार हमारे शरीर में 72,000 नाड़ियाँ होती हैं , जिनका उद्गम स्थल गुदा और जननेन्द्रिय के ठीक 12 अंगुल ऊपर तथा नाभि के ठीक नीचे है , जिसे कंद कहते हैं । अधिकतर योगियों ने इसका उद्गम स्थान नाभि के नीचे ही माना है परंतु कुछ नाड़ियों के अंतिम स्थान में मतभेद भी है । कठोपनिषद् और प्रश्नोपनिषद् के अनुसार नाड़ियों का उद्गम स्थान हृदय स्थली है जो सैकड़ों नाड़ियों का वितरण स्थान है ।
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नाड़ियाँ प्रकार एवं कार्य |
14 प्रमुख नाड़ियों का विवरण इस प्रकार है :
कुहू नाड़ी : स्वाधिष्ठान चक्र , जननांग व मूत्र नलिका तथा अपान वायु से सम्बंध रखती है ।
विश्वोदरा नाड़ी : मणिपूरक चक्र , पाचन तंत्र , समान वायु से सम्बंध रखती है ।
वारुणी नाड़ी : अनाहत चक्र , श्वसन तंत्र तथा उदान वायु से सम्बंध रखती है ।
सरस्वती नाड़ी : विशुद्धि चक्र , श्वसन तंत्र तथा उदान वायु से सम्बंध रखती है ।
सुषुम्ना नाड़ी : इस नाड़ी का सम्बंध सहस्रार चक्र , मस्तिष्क व प्राणवायु से होता है ।
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