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Sukhdev Thapar- सुखदेव थापर जी का जीवन परिचय | Sukhdev Thapar biography hindi me

 

सुखदेव थापर जी का जीवन परिचय | Sukhdev Thapar biography hindi me

' क्रान्ति में शान्ति से काम नहीं चलता '

    सन् 1928 से 1931 तक पंजाब में जो क्रान्तिकारी आन्दोलन चला , सुखदेव (Sukhdev Thapar) उसकी आत्मा थे । क्रान्तिकारी पार्टी में जो भी योजना बनती थी , उसके पीछे सुखदेव Sukhdev Thapar का दिमाग काम करता था । वह जो भी करता था , चुपचाप । वह उन शहीदों में से था , जो अपने बलिदान करके कुछ भी प्रतिफल नहीं चाहते । सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 के दिन नौघरां ( ज़िला लुधियाना ) में हुआ । उस समय उनके पिता लाला रामलाल लायलपुर में रहते थे । माता रल्लीदेई पुत्र को लेकर लायलपुर पहुंच गईं । तीन वर्ष तक परिवार सुख से रहा परन्तु 1910 में रामलाल जी का देहान्त हो गया ।

    सुखदेव Sukhdev Thapar पढ़ाई लिखाई में तेज और साहसी स्वभाव के थे । सन् 1922 में उन्होंने सनातन धर्म हाईस्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की । उसके बाद वह लाला लाजपतराय द्वारा स्थापित नेशनल कॉलेज में भर्ती हुए भगतसिंह और यशपाल उनके सहपाठियों में थे । सुखदेव के राष्ट्रवादी विचारों को पंजाब में सन् 1919 में लगे मार्शल ला और जलियांवाला बाग के हत्याकांड ने उग्र बना दिया ।

    भगतसिंह के साथ मिलकर उन्होंने ' हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ ' नामक एक गुप्त संगठन की स्थापना की और उसकी ओर से क्रान्तिकारी पर्चे छाप कर भी बंटवाये । सन् 1926 में उन्होंने ' नौजवान भारत सभा ' नाम का एक संगठन बनाया , जिसमें क्रान्तिकारी भगवतीचरण बोहरा भी सम्मिलित थे । करतार सिंह सराबा को सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के आरोप में फांसी दी गई थी । उनके बलिदान का उत्सव इस संगठन की ओर से लाहौर के ब्रैडले हॉल में मनाया गया ।

    20 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए लाला लाजपतराय पर लाठियाँ बरसाई गईं , जिनके फलस्वरूप 17 नवम्बर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई । क्रान्तिकारियों ने इस हत्या का बदला लेने का संकल्प लिया । हत्या के लिए पूर्ण ज़िम्मेदार पुलिस अधीक्षक स्कॉट को गोली मारने की योजना सुखदेव Sukhdev Thapar ने बनाई ।

    उस दिन स्कॉट अपने कार्यालय में आया ही नहीं था , इसलिए पुलिस उपाधीक्षक साण्डर्स राजगुरु और भगतसिंह की गोलियों का शिकार बना । उसके बाद भगतसिंह , राजगुरु और चन्द्रशेखर आज़ाद को लाहौर से सकुशल बाहर निकाल देने का प्रबन्ध सुखदेव ने ही किया ।

   जब सन् 1931 में गांधी- इर्विन समझौते की बात चल रही थी , तब सुखदेव Sukhdev Thapar ने क्रान्तिकारी विचारधारा को स्पष्ट करते हुए गांधी जी को एक खुला पत्र दिया था । जिसे गांधी जी ने अपने ' हिन्दी नवजीवन ' के 30 अप्रैल 1931 के अंक में प्रकाशित किया था ।

    सुखदेव Sukhdev Thapar ये मानते थे कि क्रान्ति के मार्ग में अहिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है । वह पिस्तोल सदा साथ में रखते थे । उन्होंने बम बनाना सीखा और बम बनाने शुरु किये । वे 13 मई 1929 को सहारनपुर बम कारखाना भी पकड़ा गया और वहां शिव वर्मा , जयदेव कपूर और डॉ . गयाप्रसाद भी गिरफ्तार हो गये । प्रकार से क्रान्ति दल का सारा जाल ही छिन्न - भिन्न हो गया ।

    सुखदेव Sukhdev Thapar ये मानते थे कि क्रान्ति के मार्ग में अहिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है । वह पिस्तोल सदा साथ में रखते थे । उन्होंने बम बनाना सीखा और बम बनाने शुरु किये । वे 13 मई 1929 को सहारनपुर बम कारखाना भी पकड़ा गया और वहां शिव वर्मा , जयदेव कपूर और डॉ . गयाप्रसाद भी गिरफ्तार हो गये । प्रकार से क्रान्ति दल का सारा जाल ही छिन्न - भिन्न हो गया ।

    7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह , सुखदेव और राज गुरु को फांसी की सजा सुनाई गई । कुछ समय अपीलों में लगा 23 मार्च 1931 को शाम के समय इन तीनों वीरों को फांसी दे दी गई । इस फांसी से अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध भारतवासियों का क्रोध और भी अधिक भड़क उठा । ऐसे राष्ट्रप्रेमी माँ भारती के लाड़ले सपूत को हमारा कोटि - कोटि वन्दन है ।

 

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