International yoga day के लिए सर्वश्रेष्ठ प्राणायाम
महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग का चौथा अंग है । प्राणायाम प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है प्राण और आयाम , अर्थात प्राणों का आयाम। प्राण से तात्पर्य शरीर में संचालित होने वाली वायु ( जीवनी शक्ति) से हैं। यह आयाम का अर्थ नियमन (नियंत्रण ) से है। इस प्रकार प्राणायाम से तात्पर्य हुआ श्वास प्रश्वास की क्रिया पर नियंत्रण करना। इसका अभ्यास करने से संपूर्ण शरीर स्वस्थ रहता है।
प्राणायाम के सामान्य नियम :-
- प्राणायाम करने का स्थान सुरक्षित एवं हवादार होना चाहिए। यदि खुले स्थान में अथवा जल नदी के समीप बैठकर अभ्यास करें तो सबसे उत्तम है।
- नगरों में जहां पर प्रदूषण का प्रभाव अधिक हो वहां पर प्राणायाम करने से पहले की अथवा दीपक अगरबत्ती और मोमबत्ती जलाकर उस स्थान को संबंधित करने से बहुत अच्छा रहता है।
- प्राणायाम करते वक्त बैठने के लिए आसन के रूप में कंबल, दरी, चादर अथवा चटाई का प्रयोग करें।
- प्राणायाम के लिए सिद्धासन , सुखासन या पद्मासन में कमर को सीधा रख कर बैठे। जो लोग जमीन पर नहीं कर सकते वह कुर्सी पर बैठकर भी प्राणायाम कर सकते हैं।
- प्राणायाम करते समय अपनी गर्दन, रीढ़, छाती एवं कमर को सीधा रखें।
- स्वास सदा नासिका से ही लेना चाहिए।
- प्राणायाम करने वाले व्यक्ति को अपने आहार -विहार, आचार- विचार पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- सदैव सात्विक एवं चिकनाई युक्त आहार ही लें जैसे- फल, हरी सब्जियां, दूध।
१ भस्त्रिका प्राणायाम
विधि:-
किसी ध्यानात्मक आसन में सुविधा अनुसार कमर, गर्दन, सीधी करके बैठ कर दोनों नासिकाओ से स्वास को पूरा अंदर तक बनाता था धीरे -धीरे सहजता के साथ छोड़ना 'भस्त्रिका प्राणायाम' कहलाता है।
कफ की अधिकता का या साइनस आदि रोगों के कारण जिसके दोनों नाक छिद्र ठीक से खुले हुए नहीं होते उन लोगों को पहले दाएं नाक को बंद करके बाय से रेचक और पूरक करना चाहिए। फिर बाय को बंद करके दाएं से यथाशक्ति मंद गति से करना चाहिए।
कफ की अधिकता का या साइनस आदि रोगों के कारण जिसके दोनों नाक छिद्र ठीक से खुले हुए नहीं होते उन लोगों को पहले दाएं नाक को बंद करके बाय से रेचक और पूरक करना चाहिए। फिर बाय को बंद करके दाएं से यथाशक्ति मंद गति से करना चाहिए।
सावधानियां:-
जिसको उच्च रक्तचाप, दमा, हृदयरोग हो उन्हें तीव्र गति से भस्त्रिका प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
इस प्राणायाम को करते समय जब श्वास को अंदर भरे उदर तक भरे इससे उदर नहीं फुलेगा पसलियों तक छाती ही खुलेगी।
भस्त्रिका प्राणायाम से शरीर में गर्मी आती है अतः ग्रीष्म ऋतु में धीमी गति से करना चाहिए।
लाभ:-
- भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से प्रतिक्रिया समय ( अर्थात किसी भी उद्दीपक के प्रति प्रक्रिया में लिया गया समय) में कमी आती है।
- सर्दी, जुकाम, एलर्जी, श्वास रोग, दमा, पुराना नजला, साइनस आदि समस्त कफ रोग नष्ट होते हैं। फेफड़े सबल बनते हैं , तथा हृदय एवं मस्तिष्क को शुद्ध प्राणवायु मिलने से उनको आरोग्य लाभ मिलता है।
- रक्त परिशुद्ध होता है । त्रिदोष सम होते हैं। यह है कुंडलिनी जागरण में बहुत लाभदायक हैं।
२. कपालभाति प्राणायाम:-
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कपालभाति प्राणायाम |
विधि-
कपालभाती में मात्र रेचक पर ही पूरा ध्यान दिया जाता है। पूरक के लिए प्रियत्न नहीं करते । अपितु सहज रूप से जितना सांस अंदर चला जाता है जाने देते हैं।पूरी एकाग्रता श्वास को बाहर छोड़ने में ही होती है। ऐसा करते हुए स्वाभाविक रूप से उदर में भी आकुन्चन और प्रसारण की क्रिया होती है।
एक सेकंड में एक बार श्वास को लय के साथ छोड़ना एवं सहज रूप से धारण करना चाहिए। इस प्रकार बिना रुके 1 मिनट में 60 बार तथा 5 मिनट में 300 बार कपालभाति प्राणायाम होता है। कपालभाति प्राणायाम की आवृत्ति 5 मिनट की अवश्य ही करनी चाहिए।
सावधानियां:-
- पेट के ऑपरेशन के लगभग 3 से 6 महीने के बाद ही इस अभ्यास को करना चाहिए।
- गर्भावस्था, अल्सर एवं मासिक धर्म की अवस्था में इस प्राणायाम का अभ्यास न करें।
लाभ:-
- मोटापा, मधुमेह, गैस, कब्ज, अम्लपित्त, गुर्दे तथा प्रोस्टेट से संबंध सभी रोग निश्चित रूप से दूर होते हैं।
- हृदय की धमनियों में आए हुए अवरोध खुल जाते हैं।
- डिफरेंसन, भावात्मक असंतुलन, घबराहट, नकारात्मकता आदि समस्त लोगों से छुटकारा मिलता है।
- इस प्राणायाम के अभ्यास से आमाशय, अग्नाशय, लीवर प्लीहा व आंतो का आरोग्य विशेष रूप से बढ़ता है।
- जब 60 स्वास् प्रति मिनट की गति से इसका अभ्यास किया जाता है तब नर्वस सिस्टम के क्रियाशील होने के कारण, रक्तचाप नहीं बढ़ता है।
- कपालभाति के अभ्यास से एकाग्रता बढ़ती हैं।
- मोटे व्यक्तियों में जिन्हें उच्च रक्तचाप या मधुमेह है बे कपालभाति के अभ्यास से लाभ प्राप्त कर सकते हैं किंतु उन्हें अपनी रक्त शर्करा मात्र तथा रक्षा की नियमित जांच करानी होगी।
- कपालभाति छात्रों के लिए विशेष तौर पर धीमे सीखने वाले तथा कम से कम 45 मिनट तक एकाग्रता ने रख पाने वालों के लिए अति उपयोगी है।
बाह्य प्राणायाम:-
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बाह्य प्राणायाम |
विधि:-
बसिद्धासन या पद्मासन में विधिपूर्वक बैठकर श्वास को एक ही बार में यथाशक्ति पूरा बाहर निकाल दें। श्वास बाहर निकालकर त्रिबंध अर्थात मूलबंध, उद्यान एवं जालंधर बंध लगाकर स्वास को यथाशक्ति बाहर ही रोक कर रखें।
जब सांस लेने की इच्छा बलवती हो तब बंधो को हटाते हुए धीरे-धीरे श्वास लें। श्वास भीतर लेकर उसे भीतर रोके ही उन्हें पूर्व स्वास् क्रिया कीजिए। 3 से 5 सेकंड में स्वास को सहजता से पूरा अंदर भरना एवं तीन से 5 सेकंड में ही सहजता से श्वास को बाहर छोड़कर बाहर ही 10 से 15 सेकंड रोककर रखना तथा पुऩ इसी क्रिया को बिना रुके लगातार करना उत्तम है।
इस प्रकार 2 मिनट में सामान्यता 3 से 5 बार बाह्य प्राणायाम आराम से हो जाता है और पांच बार बार प्रणाम करना सामान्य पर्याप्त है।
सावधानी :-
- निम्न रक्तचाप एवं हृदय रोगों से पीड़ित व्यक्ति को इस प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- सिर दर्द, माइग्रेन से ग्रस्त रोगी को इसका अभ्यास न करें।
- प्रारंभ में ही व्यक्ति को इसका अभ्यास न करके अन्य प्राणायाम का अभ्यास करके शरीर में मन को इस अभ्यास के अनुकूल बना लेना चाहिए ।
- यह एक उच्च कोटि का योगिक अभ्यास हैं।
लाभ :-
- बाह्य प्राणायाम से ऑक्सीजन की अधिक मात्रा का व्यवहार होने के कारण ऊर्जा की खपत ज्यादा होती है।
- बवासीर, भगंदर, फिशर आदि रोगों में लाभदायक हैं।
- स्वपनदोष, शीघ्रपतन आदि धातु अधिकारों की निवृत्ति करता है।
- बुद्धि सूक्ष्म और तीव्र होती हैं।
- ब्रह्मचर्य की रक्षा एवं कुंडलिनी जागरण में अति उपयोगी हैं।
उज्जायी प्राणायाम :-
विधि :-
ध्यान उपयोगी आसन में बैठकर दोनों नासापुटों से पूरक करते हुए गले को सिकोड़ते है। और जब गले को सिकोड़कर श्वास अंदर भरते हैं, आप जैसे खर्राटे लेते समय गले से आवाज होती हैं , वैसे ही इसमें पूरक करते हुए कंठ से ध्वनि होती है। इस प्राणायाम में सदैव दाएं नासापुट को बंद करके बायीं नासापुट से ही रेचक करना चाहिए।
प्रारंभ में कुम्भक का प्रयोग न करके केवल पूरक - रेचक का ही अभ्यास करना चाहिए। धीरे-धीरे कुंभक का समय पूराक जितना तथा कुछ दिनों के अभ्यास के बाद कुंभक का समय पूरक से दोगुना कर दीजिए। कुंभक 10 सेकंड से ज्यादा करना हो तो जालंधर बंध और मूलबंध भी लगाएं।
विशेष:- प्राणायाम से संबंध सामान्य सावधानियों का अवश्य ध्यान रखें।
लाभ:-
- थायराइड, सोते समय खर्राटे आना , टॉन्सिल , आमवात , जालोदर , ज्वर आदि रोगों में बड़ा कारगर है।
- आवाज को मधुर बनाता है अतः गायकों के लिए विशेष उपयोगी है।
- इससे बच्चों का हकलाना, तुतलाना भी ठीक होता है।
अनुलोम विलोम प्राणायाम :-
विधि:-
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर कमर, गर्दन, व सिर को सीधा रखते हुए, बाएं हाथ को ज्ञान मुद्रा में बाएं घुटने पर रखकर , दाहिने हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाकर, अंगूठे से दाएं नासापुट को बंद करके, बायं नासापुट से धीरे-धीरे लंबी गहरी सांस भरिए। पूरा श्वास भरने के उपरांत मध्यमा वह अनामिका उंगलियों से बाय नासापुट को बंद करके अंगूठा हटाकर दायं नासापुट से श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकाल दीजिए, तब दायं नासापुट से ही धीरे-धीरे पूराक कीजिए; यह एक आवृत्ति हुई। उन्हें इसी प्रकार से बिना रुके निरंतर आवृत्तियां करते रहिए।
लाभ:-
- इस प्राणायाम से शरीर में संपूर्ण नाडिया अर्थात 72 करोड़ 72 लाख 10 हजार 201 नाडिया परिशुद्ध हो जाती हैं।
- 20 मिनट तक किए गए अनुलोम-विलोम द्वारा केंद्रीय एवं चयन आत्मक एकाग्रता तथा दृष्टि संबंधी अध्ययन में बढ़ोतरी पाई गई।
- इस प्राणायाम से व्यक्ति किसी भी मनोवैज्ञानिक तनाव से रहित होकर सांस को रोक पाने में समर्थ होता है।
- संधिवात, आमवात , गठिया , कंपवात, स्नायु दुर्लभता, आदि समस्त वात रोग नष्ट होते हैं।
- स्पेशल मेमोरी के प्रबंधन में लाभकारी होता है।
ब्राह्मरी प्राणायाम:-
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ब्रह्मरी प्राणायाम |
किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर श्वास को पूरा अंदर भरकर मध्यमा उंगली से नासिका के मूल में आंख के पास से दोनों ओर से थोड़ा दबाएं, मन को आज्ञा चक्र में केंद्रित रखें अंगूठे के द्वारा दोनों कानों को पूरा बंद कर ले।
अब भ्रमर की भांति गुंजन करते हुए नाद रूप में ओम का उच्चारण करते हुए श्वास को बाहर छोड़ दें। उन्हें इसी प्रकार आवृत्ति करें।
सावधानी:-
नाद भोर की गुंजन की तरह मधुर और सहज रखना चाहिये कठोर गुंजन का प्रयोग कदापि न करें ।
आंखों के ऊपर उंगलियों से अत्यधिक दबाव में थे।
लाभ:-
- ब्राह्मणी प्राणायाम का लाभ घबराहट संबंधी विकारों के प्रबंधन में लिया जा सकता है।
- मानसिक रोगों में बेहद लाभप्रद है।
- माइग्रेन, उन्माद, मानसिक उत्तेजना, मन की चंचलता को दूर कर, स्वास्थ्य एवं शांति प्रदान करता है।
- ध्यान के लिए अत्यंत उपयोगी है।
- चरम प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
उद्गीथ प्राणायाम:-
विधि:-
3 से 5 सेकंड में श्वास को एक लय के साथ लय के साथ अंदर भरना एवं पवित्र ओम शब्द का विधिवत उच्चारण करते हुए लगभग 15 से 20 सेकंड में श्वास को बाहर छोड़ें। एक बार उच्चारण पूरा होने पर पुनः इसी प्रकार से अभ्यास करना चाहिए।
लाभ:-
- सभी लाभ ब्राह्मरी प्राणायाम की तरह है। समस्त असाध्य रोगों में निरंतर अभ्यास से लाभ मिलता है।
- तनावग्रस्त, निराश, हताश, विक्षिप्त व्यक्ति को इसके अभ्यास से संबल मिलता है अभ्यास से संबल मिलता है।
- ध्यान की गहराइयों में उतरने के इच्छुक साधकों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं ।
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