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स्वातन्त्र्य वीर सावरकर || Veer Savarkar || veer savarkar jeevan parichay in Hindi

 स्वातन्त्र्य वीर सावरकर 

veer savarkar jeevan parichay in Hindi

स्वातन्त्र्य वीर सावरकर, Veer Savarkar, veer savarkar jeevan parichay in Hindi
Veer Savarkar


    वीर सावरकर उन गिनी - चुनी हस्तियों में से थे , जिन्होंने मातृभूमि को से स्वतन्त्र कराने के लिए अपना सारा जीवन लगा दिया । शायद ही किसी महापुरुष ने उन जैसी यातनाएं देश को आजाद कराने के लिए जेल में सही जो कष्ट उन्होंने सहे उनका वर्णन करते हुए कलम भी कांप उठती है । वे स्वातंत्र्य के महान् आराधक थे ।


     वीर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जिले में भागुर नाम के गांव में 28 मई , 1883 को हुआ । उनके पिता का नाम दामोदर पंत था । उनके बड़े भाई का नाम गणेश था । उनका नाम विनायक रखा गया । घर में दोनों भाइयों को " बाबा " और " तात्या " कहकर पुकारते थे । विनायक जब 9 वर्ष के थे तो उनकी मा का देहान्त हो गया । 1901 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और बाद में फर्गुसन कॉलेज , पूना में दाखिला लिया । वीर सावरकर बचपन से ही क्रान्तिकारी विचारों के थे । कॉलेज में उन्होंने " अभिनव भारत " नाम का संगठन बनाया जहां वारों के चरित्र का गठन होता था । शिवाजी का चित्र भोजन कक्ष में लगाया गया । दोनों भाई देश की आजादी की बात करते थे । 


     Veer Savarkar पर मां का बड़ा प्रभाव पड़ा । वह विनायक दामोदर सावरकर को शिवाजी जैसे वीरों की कहानियां सुनाया करती थीं और अक्सर पूछा करती थी कि तुम वीर बनोगे न ! सावरकर खुशी से हां भरकर कहते कि हां मां मैं वीर बूनंगा । उन्होंने ' अभिनव भारत ' की स्थापना की और विदेशी कपड़ों की होली जलाई , जिससे उन्हें कॉलेज से निकाल दिया । एक दिन ' मित्र मेला ' के तत्त्वावधान में उन्होंने विदेशी कपड़ों का ढेर लगाया और बाद में आग लगा दी । उस समय लोकमान्य तिलक भी वहीं आए और हजारों लोगों को विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने तथा अंग्रेजी न बोलने की प्रतिज्ञा दिलाई । सावरकर ने उस समय नारा लगाया था कि विदेशी कपड़ों की भांति एक दिन अंग्रेजी साम्राज्य का भी इसी तरह नाश होगा । इस पर तिलक ने सावरकर को छाती से लगा लिया । 


    भारत में ' नासिक षड्यन्त्र ' के नाम पर अंग्रेजी सरकार ने क्रान्तिकारियों को पकड़ना शुरू कर दिया । उनके भाई गणेश सावरकर को भी एक पुस्तक प्रकाशित करने के आरोप में देशद्रोही करार देकर काला पानी की सजा दी गई । इसकी सूचना इंग्लैण्ड में Veer Savarkar को भेज दी गई । इस घटना से क्रोधित होकर श्री मदनलाल ढींगरा जो इंजिनीयरिंग पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड गए थे , ने एक सभा में कर्नल सर विलियम कर्जन वायली , जो भारत में राज सचिव के दफ्तर में ए . डी.सी. थे , की गोली मारकर हत्या कर दी । श्री मदन लाल ढींगरा को गिरफ्तार किया गया तथा उसे फांसी की सजा दी गई । राजद्रोह तथा अंग्रेज अधिकारियों की हत्या के आरोप में उन्हें इंग्लैण्ड में विक्टोरिया स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया तथा भारत लाया गया । सावरकर को 23 सितम्बर , 1910 को आजीवन कारावास व कालापानी की सजा दी तथा साथ में समस्त सम्पत्ति जब्त करने की भी सजा सुनाई । सावरकर को 50 वर्ष तक अंडमान की कारागार में रहना था । 


    31 जनवरी , 1911 में उन्हें अंडमान भेज दिया गया । अंडमान की पोर ब्लेयर जेल में उनके साथ निर्मम व्यवहार किया गया । तेल निकालने के लिए उन्हें । कोल्हू के बैल की तरह जोता जाता था । नहाने के लिए कालापानी देते थे । तीन मग से ज्यादा पानी पीने के लिए नहीं मिलता था । पानी इतना कड़वा था कि उसे पीना भी मुश्किल था । सोने के लिए छोटी - छोटी कोठरियां थीं । कई बार उन्हीं में टट्टी पेशाब भी करना पड़ता था । अन्य कई क्रान्तिकारी भी इस जेल में थे । उनके भाई गणेश सावरकर भी इसी जेल में थे । वह भी साथ रहते थे । दुःख की बात यह थी कि कोई भी क्रान्तिकारी आपस में इशारों से भी बात नहीं कर सकता था । जेल की यातनाओं को Veer Savarkar ने अपनी ' माझी जन्मठेप ' नामक पुस्तक में लिखा है । जेल में रहते हुए उन्होंने ' कमला ' , ' गोमंतक ' तथा ' महासागर ' नामक काव्यों की रचना की । 


    वीर सावरकर ने 12 साल तक कालापानी की सजा काटी । उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा । उनकी मुक्ति के लिए चारों ओर से सरकार पर दबाव पड़ने लगा और अंत में अंग्रेजी सरकार ने दोनों भाइयों को छोड़ दिया । सन् 1921 में दोनों भाइयों को भारत वापस लाया गया ।


    कालापानी से लाकर दोनों सावरकर बन्धुओं को कलकत्ता की अलीपुर जेल में बन्द कर दिया । बाद में वीर सावरकर को 1923 में यरबदा जेल में भेज दिया गया । 1924 में उन्हें मुक्त कर दिया लेकिन उन पर प्रतिबन्ध लगाया गया कि वे रत्नागिरी जिले से बाहर नहीं जायेंगे । 1924 से 1937 तक वे नजरबन्द रहे । 1937 में उनकी कैद का अन्त हुआ , जब कांग्रेस मन्त्रिमण्डल बनने पर उनकी नजरबन्दी खत्म की गई । 


    1901 में उनका विवाह यमुनाबाई से हो गया था । लेकिन 1924 से पूर्व यमुनाबाई उनके साथ नहीं रही क्योंकि Veer Savarkar/ सावरकर इंग्लैण्ड और अंडमान की जेल में रहे । उन्हें प्रभात नाम की कन्या और विश्वास नाम का पुत्र पैदा हुआ । 


    उनके जीवन में ही भारत आजाद हुआ । भारत विभाजन से उनको बहुत दुःख हुआ । 1948 में महात्मा गांधी की हत्या हुई । उन्हें बन्दी बनाया गया लेकिन वीर सावरकर पर कोई आरोप साबित न होने पर उन्हें निष्कलंक घोषित कर दिया गया । भारत सरकार ने 1965 में उन्हें " अप्रतिम स्वातन्त्र्य - वीर " घोषित किया तथा अंडमान कारागार के उस कमरे को जहां उन्हें जेल में रखा गया था , उसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया । 


उन्हें बड़ी खुशी हुई जब भारत ने 1965 में पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की लेकिन जब उन्होंने सुना की ताशकन्द समझौते के अनुसार जीता हुआ क्षेत्र वापस पाकिस्तान को दिया जायेगा तो वीर सावरकरउन्हें बड़ा दुःख हुआ और कहा कि “ हे मृत्यु ! तू मुझे अपनी गोद में आत्मसात कर ले ताकि मुझे देश की दुर्दशा न देखनी पड़े । वह बीमार रहने लगे । उन्होंने दवा लेनी छोड़ दी और खान - पान भी छोड़ दिया । 26 फरवरी , 1966 को Veer Savarkar यह नश्वर शरीर त्यागकर चल दिए । देश को आजाद कराने के लिए जो यातना उन्होंने सही , उसे राष्ट्र कभी नहीं भूल सकता । उनका तप , त्याग और राष्ट्रप्रेम सदैव भारतीयों को प्रेरित करता रहेगा ।


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