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योग यानी जुड़ना और जोडना || Yoga means joining and joining.

 योग यानी जुड़ना और जोडना 


Yoga means joining and joining.


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     तन और मन जब एक होते हैं , तब हम खुश होते हैं । तरोताजा महसूस करते हैं । हम कितना ही मन की बात करें , तन को साधे बिना कुछ नहीं होता । दूसरी ओर , हम कितना ही तन की बात करें , मन को साधे बगैर कुछ नहीं होता । तन और मन का एक लाइन में होना कमाल कर देता है । तन और मन के एक होने से हमें कई तरह के दबाव और तनाव से छुटकारा मिल जाता है । हम सहज होने लगते हैं । योग तन और मन को एक करता है । योग हमें सहज होना सिखाता है । 

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      Yoga हमें उन चीजों को ठीक करना सिखाता है , जिसे सहा नहीं जा सकता । और उन चीजों को सहना सिखाता है , जिसे ठीक नहीं किया जा सकता । इस मायने में योग महज व्यायाम का तरीका या कुछ आसनों का नाम नहीं है । यह एक पूरा दर्शन है , जो हर कदम पर सहजता की ओर ले जाता है । हर समय की बेचैनी , भागदौड़ , अपने या दूसरों के लिए गुस्सा , हमें संतुलन से दूर कर देता है । हम बीमार पड़ने लगते हैं । छोटी- छोटी समस्याओं पर बिफर उठते हैं ।

       फिर हर समय कुछ करने की कोशिश क्यों ? जहां कोशिशें होती हैं , वहां सहजता नहीं होती । योग सुधरने या सुधारने की बेचैनी नहीं है । यह खुद को और दूसरों को अपनाने का सुकून है।जो नहीं है , हम उसके बिना भी सहज हो सकें , यह आना भी तो जरूरी है ना ! जिंदगी में हमेशा हमारे मन का कहां होता है । जो होता है , उसके लिए मन बना लेना भी तो उतना ही जरूरी होता है।हम खुद को कोसते न रहें , खुद को अपनाएं भी । हमेशा दूसरों को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश न करें , उन्हें अपने ढंग से चलने दें । यह जीवन के साथ हमारा योग है । हमारा कोई भी रिश्ता , हमारा स्वयं के साथ जो रिश्ता है , उसकी झलक होता है । अगर हमारे भीतर  बेचैनियां हैं तो उसका असर हमसे जुड़ी हरेक चीज पर पड़ेगा । हम जितना बेहतर ढंग से खुद से जुड़े होंगे , उतना ही दूसरों से दूसरों से जुड़ सकेंगे ।


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 ये योग नहीं आसां -

    योग के आसन करना फिर भी आसान है । हर समय जुड़ने और जोड़ने के भाव में जिंदगी को जीना मुश्किल है । यौगिक क्रियाओं को ढंग से करने के लिए अभ्यास करना ही होता है । पर , उससे अधिक अभ्यास जिंदगी को योग भाव से जीने के लिए करना पड़ता है । एक और एक दो करने का योग आसानी से हो जाता है , लेकिन जब बात जिंदगी के जोड़ की तब हर ईकाई को बड़े ध्यान से जोड़ना पड़ता है । ध्यान भटका नहीं कि जोड़ गड़बड़ा जाता है । शायद यही कारण है कि हमारे ऋषि - मुनियों ने ध्यान को योग का जरूरी हिस्सा माना है । हम भटके नहीं , इसके लिएहमाराजागना जरूरी होता है । हम सही ढंगसे , लंबे समय तक जागेरह सकें , इसके लिए बहुत अभ्यास की आवश्यकता होती है । 

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    पर , एक और एक जुड़ कर भी एक ही रहें , यह योग आसान नहीं होता । यह एक अलग तरह का अद्वैत है । तब हमें बहता हुआ पानी बनना पड़ता है , जहां बीते समयकी अटकन नहीं होती । रास्ते में आने वाले हरगड्ढे को भरकर भी हम आगे बढ़ते रहते हैं । हमें अपने भीतर आकाश जैसा खुलापन लाना होता है , जहां हरविचार के उड़ान भरने की जगह होती है । अपनी सांसों के साथ जुड़ना , जिसे ' माइंडफुलनेस ' कहते हैं , यह भी तो योग ही है । अपने तन - मन की हर हरकत को हम समझलें , यह बिना योग के संभव नहीं है । योग गुरु आदिल पालखीवाला के अनुसार , ' योग केवल तन का नहीं , संपूर्ण जीवन का सही आकार है । योग किया नहीं जाता , जिया जाता है ।

 ' हमारा तन मजबूत हा , हमारा मन सही रास्ते पर हो , और चाहिए ही क्या ! यही तो योग है ।


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