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GUGGULU |
ऋषियों की खोज नये शोध के साथ गुग्गुलु / वटी
आयुर्वेद की विशिष्ट प्रक्रिया गुग्गुलु कल्प द्वारा निर्मित औषधियाँ
आयुर्वेद चिकित्सा में गुग्गुलु का विशेष महत्व है । समस्त वायु रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है । यह अग्नि दीपक , गर्भाशय को उत्तेजित करने वाला , मासिक धर्म को नियमित करने वाला , रक्त में श्वेताणुओं की वृद्धि करने वाला , मूत्र , कफ निःसारक , कृमि नाशक आदि गुणों वाला होता है ।
दिव्य गोक्षुरादि गुग्गुलु
Divya Gokshuradi Guggulu in Hindi
गुर्दे की पथरी तथा मूत्रनली संक्रमण , मूत्र कृच्छ , मूत्र में जलन , शोथ मूत्र कम आना आदि में लाभदायक ।
दिव्य कांचनार गुग्गुलु
Divya Kanchnar guggulu in Hindi
गुर्दे की पथरी तथा मूत्रनली संक्रमण , मूत्र कृच्छ , मूत्र में जलन , शोथ मूत्र कम आना आदि में लाभदायक ।
दिव्य केशोर गुग्गुलु
Divya Keshor Guggulu in Hindi
वातरक्त , घाव , कोढ़ , गुल्म , पिड़िका , वात एवं रक्त संबंधी विकारों में लाभप्रद।
दिव्य महायागराज गुग्गुलु
Divya Mahayograj Guggulu in Hindi
समस्त वातव्याधि , आमवात , पक्षाघात , संधिवात , वातरक्त , व मेदोवृद्धि में लाभप्रद ।
दिव्य त्रयोदशांग गुग्गुलु
Divya Triyodashank Guggulu in Hindi
कटिस्नायुशूल तथा नसों के दर्द , संधिवात , वातरक्त आदि में लाभप्रद।
दिव्य लाक्षादि गुग्गुलु
Divya Lakshadi Guggulu in Hindi
स्वास्थ्यवर्द्धक , जीवाणु एवं वायरल संक्रमण से बचाव , चर्म रोग से बचाव , त्रिदोष को संतुलित बनाये रखने और सभी तरह के ज्वर में भी लाभकारी |
दिव्य सिंहनाद गुग्गुल
Divya Singhnad Guggule
कठिन से कठिन आमवात ( रिमुटाइड आर्थराइटिस ) , पक्षाघात , संधिवात आदि में लाभप्रद ।
दिव्य त्रिफला गुग्गुलु
Divya Triphala Guggulu in Hindi
बवासीर , भगंदर , वातजशूल , लकवा , गृध्रसी , सधि - मज्जागतवायु में लाभदायक । दिव्य योगराज गुग्गुलु गठिया ( ओस्टियो आर्थराइटिस ) तथा अन्य जोड़ों के दर्दों में लाभप्रद।
दिव्य सप्तविंशति गुग्गुलु
Divya Saptvishanti Guggulu in Hindi
शोथ , मूत्रनली के विकार एवं जोड़ों के रोगों मे लाभप्रद ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
सभी गुग्गुलु 1-1 या 2-2 की मात्रा में प्रातः सायं विभिन्न रोगानुसार गर्म जल या अन्य वैद्यनिर्दिष्ट अनुपान के साथ लेते है । वैसे तो सभी गुग्गुलु पूर्ण रूप से निरापद होते हैं , फिर भी औषधियों का प्रयोग वैद्यकीय परामर्श में लेना यथोचित होता है । कुशल व प्रशिक्षित किसी भी योग्य वैद्य के परामर्श से ही अपनी चिकित्सा करानी चाहिए ।
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patanjali churana |
प्राकृतिक स्वाद , गुणों से भरपूर औषधियाँ एवं चूर्ण / पाउडर
आयुर्वेद की विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा निर्मित औषधियाँ , चूर्ण एवं पाउडर
रोगाधिकार भेद से विभिन्न वानस्पतिक एवं अन्य द्रव्यों को अच्छी तरह पीस कर चूर्ण बनाया जाता है । क्षार , लवण तथा अम्ल द्रव्य मिश्रित चूर्ण उष्ण , पाचक , सारक , अग्नि दीपक एवं रुचिवर्द्धक होते हैं । शक्कर या मिश्री मिश्रित चूर्ण विरेचन गुण - धर्म युक्त सौम्य और पित्तशामक होते हैं जबकि तिक्त ( कड़वे ) पदार्थ से युक्त चूर्ण कण्डू और ज्वर नाशक होते हैं । जड़ी - बूटियों को अच्छी तरह सुखाकर साफ करके कूट - पीसकर बनाई गई औषधि को आयुर्वेद में चूर्ण कहते हैं ।
दिव्य चूर्ण
Divya Churana in Hindi
' जायन्ते विविधा रोगाः प्रायशो मलसंचयात् ' शरीर में मल का संचय होने से ही मुख्यतः सभी रोग उत्पन्न होते हैं । यह चूर्ण कब्ज को दूर करता है तथा आँतों में जमे मल को साफ कर उसे बाहर निकालता है । आँतों को क्रियाशील बनाता है , जिससे आँतों की अन्दर की परत मल को पुनः जमने नहीं देती ।
मात्रा एव उपयोग विधि :- 1 चम्मच या आवश्यकतानुसार चूर्ण रात्रि सोने से पहले गर्म जल के साथ सेवन करें ।
दिव्य वातारि चूर्ण
Divya Vatari Churana in Hindi
सौंठ , अश्वगंधा , सुरंजान मीठी , कुटकी , मेथी आदि से निर्मित इस चूर्ण के सेवन से सब प्रकार के वातरोग दूर होते हैं । आमवात अर्थात् पेट में आम सचित होकर वात प्रकुपित हो , शरीर के जोड़ों में दर्द उत्पन्न करता है , उसमें यह अतीव लाभकारी है ।
मात्रा एवं सेवन विधि:- 2 या 4 ग्राम तक गर्म जल या दूध के साथ प्रातः , दोपहर - साय के भोजन के बाद दो या तीन बार सेवन करें ।
दिव्य उरदकल्प चूर्ण
Divya Udarkalp Churana in Hindi
यह पित्तशामक , मृदु विरेचक और सौम्य औषध है । इस चूर्ण के सेवन से पेट साफ होकर कब्ज दूर होता है । इसके सेवन से आँतों में किसी प्रकार की जलन या विकार उत्पन्न नहीं होते । यह जठराग्नि को प्रदीप्त कर आम का पाचन करता है । बच्चों , महिलाओं एवं वृद्धों की प्रकृति ही सौम्य होती है , पेट साफ करने वाले बाजार तेजचूर्ण इनको नुकसान पहुँचा सकते हैं , परन्तु यह चूर्ण इनके लिए हानिरहित है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
1 चम्मच चूर्ण रात खाने के आधा या 1 घंटा बाद गर्म पानी से सेवन करें । बच्चों या बड़ों को आवश्यकतानुसार मात्रा कम या ज्यादा कर सकते हैं ।
बहेड़ा चूर्ण
Divya Baheda Churana in Hindi
खांसी , उदर संबंधी रोगों तथा दृष्टि विकारों में लाभप्रद ।
दिव्य अश्वगंधा चूर्ण
Divya Aswagandha Churana in Hindi
तनाव , थकान और सामान्य दुर्बलता , शारीरिक शिथिलता , कृशता , स्नायुविकार आदि में लाभप्रद ।
दिव्य अजमोदादि चूर्ण
Divya Ajmodadi Churana in Hindi
जोड़ों के दर्द , कटिस्नायुशूल तथा जोड़ों की सूजन व उदर रोगों में भी लाभप्रद ।
दिव्य आँवला चूर्ण
Divya Amla Churana in Hindi
दृष्टि विकारों , नाक से रक्तस्राव , अम्लता तथा कब्ज एवं अधिक पसीना आना व शरीर से बदबू आना आदि में लाभप्रद ।
दिव्य सितोपलादि चूर्ण
Divya Sitopladi Churana in Hindi
खांसी , सर्दी , ज्वर तथा अस्थमा में लाभकारी बच्चों को बार - बार होने वाली खांसी के लिए अत्यन्त लाभकारी व निरापद औषध है ।
दिव्य त्रिकटु चूर्ण
Divya Trikutu Churana in Hindi
अजीर्ण , अपच तथा खांसी , कफ व गले के रोगों में लाभकारी ।
दिव्य बाकुची चूर्ण
Divya Bakuchi Churana in Hindi
श्वेत कुष्ठ , त्वचा रोग व त्वचा की बदरंगता ( विटिलिगो ) में लाभप्रद ।
दिव्य हरीतकी चूर्ण
Divya Haritki Churana in Hindi
अपच , कब्ज तथा अन्य उदर विकारों में लाभप्रद ।
पतंजलि शतावरी चूर्ण
Patanjali Shataver Churana in Hindi
दुग्धवर्धक , पौष्टिक , बलवर्धक , स्नायुपीड़ा व सभी तरह की कमजोरी में लाभदायक ।
दिव्य त्रिफला चूर्ण
Divya Triphala Churana in Hindi
दृष्टि विकारों , कब्ज तथा उदर विकारों में लाभप्रद ।
दिव्य अविपत्तिकर चूर्ण
Divya Avipattikar Churana in Hindi
अम्लपित्त , अपच तथा कब्ज में लाभप्रद ।
दिव्य बिल्वादि चूर्ण
Divya Bilvadi Churana in Hindi
दस्त तथा पेचिश , संग्रहणी , आंव , आंतों की कमजोरी में लाभप्रद ।
दिव्य पुष्यानुग चूर्ण
Divya Pushyanu Churana in Hindi
सभी स्त्री रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य लवणभास्कर चूर्ण
Divya Lavanbhaskar Churana in Hindi
यह चूर्ण मंदाग्नि , आध्मान , उदरशूल , पाचन संबंधित विकार एवं उद संबंधित रोगों में लाभकारी है ।
दिव्य गंगाधर चूर्ण
Divya Gangadhar Churana in Hindi
दस्त तथा पेचिश व संग्रहणी में लाभप्रद ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
1/2 या 1 चम्मच लगभग ( दो से पांच ग्राम ) चूर्ण खाली पेट या खाने के बाद रोगों के अनुसार सुबह - शाम ताजे जल या गुनगुने जल के साथ सेवन करना चाहिए ।
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kwath |
विशिष्ट गुणों के साथ स्वानुभूत एवं शास्त्रीय क्वाथ / काढ़ा
आयुर्वेद की विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा निर्मित क्वाथ एवं काढ़ा
दिव्य पीड़ान्तक क्वाथ
Divya Peedantak Kwath in Hindi
पीपलामूल , निर्गुण्डी , अश्वगंधा , रास्ना , नागरमोथा , एरण्डमूल , सौंठ अजवायन , नागकेशर , गजपीपल , पारिजात आदि वातनाशक औषधियों से निर्मित इस क्वाथ का सेवन जोड़ों के दर्द , गृध्रसी ( साइटिका ) , गठिया आदि सभी प्रकार के दर्द व शोथ में लाभप्रद है ।
दिव्य मेधा क्वाथ
Divya Medha Kwath in Hindi
जीर्ण सिरदर्द , माईग्रेन , निद्राल्पता , अवसाद , डिप्रेशन में अत्यन्त लाभप्रद है । इसके सेवन से घबराहट दूर होती है तथा यह स्मृतिवर्धक है । मेघा क्वाथ के साथ मेधा वटी के निरन्तर प्रयोग से मिरगी दौरे , कम्पवात , पैरालाइसिस , मानसिक विकलांगता , समस्त मनोरोग , मस्तिष्कीय विकार एवं सभी प्रकार की न्यूरोलोजिकल समस्याओं में भी अत्यधिक लाभ होता है ।
दिव्य सर्वकल्प
Divya Sarvkalp Kwath in Hindi
क्वाथ इस क्वाथ के सेवन का प्रभाव यकृत को सबल बनाता है । आजकल के दूषित खाने तथा दूषित पेयों ( शीतल पेय , कोल्ड ड्रिंक्स , चाय ) आदि के माध्यम से शरीर के अन्दर जहरीले रसायन एकत्र होकर यकृत की क्रियाशीलता को नष्ट कर देते हैं , फलतः पीलिया व उसकी अत्यन्त जटिल स्थिति हेपेटाइटिस बी तथा सी जैसी असाध्य अवस्था में पहुँच जाता है । सर्वकल्प क्वाथ लीवर से सम्बन्धित उपरोक्त हेपेटाइटिस बी तथा सी जैसी जीर्ण अवस्थाओं से बचाकर यकृत को क्रियाशील बनाता है । इसके सेवन से पीलिया पाण्डू , यकृत की वृद्धि , सूजन , मूत्रल्पता सर्वांगशोथ व पेट व पेडू का दर्द होना , भोजन का पाचन न होना , भूख न लगना आदि समस्त विकार दूर होते हैं ।
दिव्य वृक्कदोषहर क्वाथ
Divya Vrikkdoshhar Kwath i Hindi
पाषाण भेद , गोखरू , पुनर्नवामूल , कुलथी , वरुणछाल आदि जड़ी बूटियों से निर्मित इस औषधि का सेवन हमारे उत्सर्जन तंत्र को विशेष रूप से प्रभावित करता है । यह मूत्रल , शीतल व शोथहर है । इसके सेवन से गुर्दे की पथरी तथा मूत्राशय की पथरी घुल - घुलकर निकल जाती है । जिनको बार - बार पथरी बनने की शिकायत हो , इसका सेवन करने पर निश्चित रूप से पथरी बननी बंद हो जाती है । इससे गुर्दे के अंदर का संक्रमण ( इन्फैक्शन ) व अन्य वृक्क सम्बन्धी विकार दूर होते है । पित्ताशय की पथरी में भी यह लाभप्रद है
दिव्य अश्मरीहर क्वाथ
Divya Ashmrihar Kwath in Hindi
पाषाणभेद , वरुण , पुनर्नवा , गोक्षुर से निर्मित दिव्य अश्मरीहर क्वाथ का सेवन मुख्य रूप से वृक्काश्मी में अति लाभदायक है । अश्मरीहर क्वाथ का प्रयोग पित्ताश्मरी में भी देखा गया है । इसके अतिरिक्त समस्त मूत्र विकारों जैसे - मूत्रकृच्छ , मूत्रदाह आदि में भी इसका सेवन लाभकारी है ।
दिव्य कायाकल्प क्वाथ
Divya Kayakalp Kwath in Hindi
बावची बीज , पनवाड़ , हल्दी , दारुहल्दी , खैरछाल , करंज बीज , नीम छाल , गिलोय आदि वनस्पतियों से निर्मित इस क्वाथ का सेवन सब प्रकार के चर्मरोग , एग्ज़िमा , कुष्ठरोग श्लीपद कैंसर आदि रोगों में अत्यन्त लाभकारी है । इससे पेट साफ होता है । मोटापा कम करने में भी यह सहयोग करता है ।
दिव्य मुलेठी क्वाथ
Divya Mulethi Kwath in Hindi
गले के संक्रमण , अम्लपित्त व अजीर्ण तथा उदर विकारों में लाभप्रद ।
दिव्य गिलोय क्वाथ
Divya Giloy Kwath in Hindi
ज्वर , खांसी , चर्म विकारों , निम्न प्लेटलेट मात्रा , डेंगू , चिकनगुनिया तथा मलेरिया में लाभप्रद।
दिव्य श्वासारि क्वाथ
Divya Swasari Kwath in Hindi
वासा , Mulethi , कटेली तुलसी , सौंठ , पिप्पली आदि श्वसन संस्थान पर कार्य करने वाली जड़ी बूटियों से निर्मित उत्तम औषधि के सेवन से फेफड़ों में क्रियाशीलता आती है तथा कफ , नजला , जुकाम , दमा , छीक , सिर में भारीपन , साइनस आदि रोगो में विशेष लाभ होता है । इसके सेवन से फेफड़ों की Immunity Power का विकास होता है ।
दिव्य ज्वर नाशक क्वाथ
Divya Jwernasak Kwath in Hindi
यदि किसी को मन्द -2 ज्वर की प्रतीती होती हो और किसी भी औषधि से बुखार सामान्य नहीं हो पा रहा हो , ज्वर से शरीर में टूटन , दर्द व भारीपन हो लम्बे समय से बुखार के बाद शरीर में कमजोरी व पाचन क्रिया मन्द पड़ गयी हो ऐसी सभी परिस्थितियों में ज्वरनाशक क्वाथ का सेवन अत्यन्त लाभकारी है ।
दिव्य अर्जुन क्वाथ
Divya Arjun Kwath in Hindi
सभी प्रकार की हृदय संबंधी समस्याओं में लाभप्रद ।
दिव्य दशमूल क्वाथ
Divya Dashmula Kwath in Hindi
सभी प्रकार के ज्वर तथा वात विकारों एवं स्त्री रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य टोटला क्वाथ
Divya Totla Kwath in Hindi
हेपेटाइटिस , पीलिया , पाण्डुरोग तथा अन्य यकृत विकारों में लाभप्रद ।
सभी तरह के क्वाथ द्रव्यों की सामान्य मात्रा एवं उपयोग विधि:-
5 से 10 ग्राम क्वाथ द्रव्यों को लेकर लगभग 400 मिली . पानी में पकाकर जब लगभग 100 ml . शेष रह जाए तो छानकर सुबह खाली पेट व रात्रि को भोजन से लगभग 1 घण्टा पहले या रात को सोने से पहले पीयें । यदि किसी क्वाथ का स्वाद कड़वा है । ऐसी स्थिति में यदि आपको मधुमेह नहीं है तो शहद या मीठा मिलाकर भी पी सकते हैं । यदि काढ़ा अधिक मात्रा में न पीया जाए , तो ज्यादा उबालें और कम जल शेष रहने पर छानकर पीयें । ध्यान रहे शहद काढ़े के शीतल होने पर ही मिलाएं , गर्म में कदापि नहीं ।
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Risht |
परम्परा पुरानी प्रभाव तुरन्त आसव एवं अरिष्ट
द्रवेषु चिरकालस्थं द्रव्यं यत्संधितं भवेत् ।
आसवारिष्टभेदैस्तु प्रोच्यते भेषजोचितम् ||
दिव्य फार्मेसी तथा पतंजलि आयुर्वेद में आसव , अरिष्ट एवं तरल क्वाथ ( प्रवाही ) का निर्माण अनुभवी वैद्यों के दिशानिर्देशन में बहुत ही सावधानीपूर्वक शास्त्रोक्त विधि से संधान करके किया जाता है । जिसमें वनस्पतियों की शुद्धता , मात्रा तथा उसकी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है । इसलिये दिव्य फार्मेसी तथा पतंजलि आयुर्वेद के आसव व अरिष्ट गुणकारी एवं सद्यः प्रभावशाली हैं ।
दिव्य अश्वगंधारिष्ट
Divya Ashwagandharishta in Hindi
तनाव , थकान तथा अवसाद , शिथिलता , स्नायुदुर्बलता , अनिद्रा , सामान्य दुर्बलता में लाभप्रद ।
दिव्य खदिरारिष्ट
Divya Khadirarishta in Hindi
चेहरे के दाग , धब्बे , कील - मुहासे एवं सभी तरह के रक्त विकार व चर्म रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य अभयारिष्ट
Divya Abhiyarishta in Hindi
बवासीर , नाड़ीव्रण , बिवन्ध , उदर विकार एवं मूत्रकृच्छ्र में लाभप्रद ।
दिव्य अरविन्दासव
Divya Arvindasav in Hindi
बच्चों की वृद्धि एवं सभी तरह के बाल रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य पत्रांगासव
Divya Patrangasav in Hindi
श्वेतप्रदर एवं पीड़ायुक्त मासिक धर्म में लाभप्रद ।
पतंजलि लोहासव
Patanjali Lohasav in Hindi
खून की कमी , पीलिया , एवं जिगर संबंधित समस्याओं में ।
दिव्य विडंगासव
Divya Vidangasav in Hindi
सभी प्रकार के कृमि रोगों एवं उदर सम्बन्धी विकारों में ।
दिव्य कुटजारिष्ट
Divya Kutjarist in Hindi
आंव , संग्रहणी एवं अतिसार में लाभप्रद ।
दिव्य अशोकारिष्ट
Divya Ashokarist in Hindi
मासिक धर्म संबंधी सभी विकारों व वेतप्रदर तथा कमजोरी , घबराहट व चिडचिड़ाहट में लाभप्रद |
दिव्य उशीरासव
Divya Usirasav in Hindi
नकसीर एवं मूत्र नली के संक्रमण में लाभप्रद व रक्तशोधक , रक्तार्श व विबन्ध में हितकारी ।
दिव्य अर्जुनारिष्ट
Divya Arjunarist in hindi
हृदय रोगों , घबराहट , हृदय शूल , उच्चरक्तचाप आदि में लाभप्रद।
दिव्य कुमार्यासव
Divya Kumaryasav in Hindi
यकृत् एवं उदर संबंधी समस्याओं में लाभप्रद ।
दिव्य पुनर्नवारिष्ट
Divya Punarnavarist in Hindi
रक्ताल्पता , शोथ , पीलिया व यकृत् संबंधी समस्याओं में लाभप्रद ।
दिव्य सारस्वतारिष्ट
Divya Sarasvtarist in Hindi
स्मृतिलोप , मनोवसाद , अपस्मार एवं अन्य मानसिक विकारों में ।
दिव्य महामंजिष्ठादि क्वाथ
Divya Mahamanjishthadi Kwath in Hindi
सभी प्रकार के त्वचा रोगों में लाभप्रद एवं रक्त शोधक ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
उपरोक्त सभी औषधियों को 3 से 4 चम्मच लेकर बराबर मात्रा में जल मिलाकर भोजन के पश्चात दिन में दो बार सेवन करें । ( बच्चों को 1-1 चम्मच समभाग जल मिलाकर सेवन कराएं ।
स्वर्ण व अन्य कीमती धातुएँ सौन्दर्य ही नहीं , जीवन भी देती हैं-
( रस - रसायन एवं स्वर्णयुक्तयोग ) आयुर्वेद की अति प्रभावशाली आशुकारी औषधियाँ
पारद और पारद के विविध खनिजों तथा गन्धक आदि के संयोग से जो औषधियाँ बनती हैं , वे रस रसायन कहलाती हैं । पारद योगवाही एवं अल्पमात्रोपयोगी होने के कारण उसके साथ मिश्रित द्रव्यों के गुणों को वह अपनी विलक्षण शक्ति के प्रभाव से अत्यन्त बढ़ा देता है । अत एव आयुर्वेदीय रस - रसायनों का चिकित्सा जगत् में महत्तवपूर्ण स्थान है , परन्तु पारद आदि के शोधन में जहाँ पूर्ण सावधानी की आवश्यकता होती है , वहीं भस्मों के निर्माण में अत्यन्त श्रम व समय की आवश्यकता होती है । हम इसका विशेष ध्यान रखते हैं । जहां इंजेक्शन जैसी आशुफलकारी औषधियाँ एवं सल्फाइम्स जैसी तीव्र औषधियाँ भी असफल हो जाती है और असाध्य समझ कर त्यागे हुए कितने ही कठिन रोगों से पीड़ित रोगियों को भी आयुर्वेदीय रस - रसायनों के सेवन से पूर्ण स्वास्थ्य - लाभ प्राप्त करते देखा गया है । दिव्य फार्मेसी द्वारा निर्मित रस - रसायन बाजार में उपलब्ध अन्य रस - रसायनों की तुलना में अत्यन्त कम मूल्य पर एवं पूर्ण शास्त्रोक्त विधि से बनाए गए उच्च गुणवत्ता युक्त होते हैं ।
दिव्य श्वासारि रस
Divya Swasari Ras in Hindi
इसके सेवन से श्वसन नलिकाओं एवं फेफड़ों का शोथ दूर होता है , जिससे अधिक मात्रा में आक्सीजन फेफड़ों को मिलती है और नजला , जुकाम , दमा , श्वसन नली का संक्रमण जैसी समस्याओं से छुटकारा . मिल जाता है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
1 से 2 ग्राम तक दिन में 2 से 3 बार खाने से पहले शहद या गर्म पानी से या श्वासारि प्रवाही के लें । इसको खाने के बाद भी लिया जा सकता है ।
दिव्य श्वासारि प्रवाही
Divya Swasari Pravahi in Hindi
यह श्वसन तंत्र के विकारों का सर्वोत्तम टॉनिक है । बच्चे भी इस औषधि को आसानी से ले सकते हैं । इसके सेवन से सर्दी , गंभीर से गम्भीर खांसी , अस्थमा , पसली चलना , छाती में कफ़ जमा होना , आदि परेशानियाँ दूर होती हैं । ज्यादा परेशानी होने पर श्वासारि रस 1 ग्राम सिरप में मिलाकर ले सकते हैं ।
मात्रा एव उपयोग विधि :-
5 या 10 मिली दवा दिन में दो - तीन बार आवश्यकतानुसार सेवन करायें ।
दिव्य दिव्य हरिद्राखण्ड
Divya Haridrakhand in Hindi
आयुर्वेदोक्त बहुप्रचलित वनस्पतियो - हल्दी , निशोथ , हरीतकी आदि से निर्मित हरिद्राखण्ड शीतपित्त ( अटर्टीकेरिया ) त्वचा विकार आदिएलर्जिक बीमारियों में अत्यन्त गुणकारी औषधि है । इसकेलगातार सेवन से गंभीर एलर्जिक बीमारियों भी दूर होती है और साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
आधा चम्मच आवश्यकतानुसार सुबह शाम गुनगुने पानी या दूध के साथ ले सकते हैं
दिव्य गिलोय सत्-
जीर्ण ज्वर , मन्द - मन्द ज्वर बने रहना , हाथ और पैरों के तलुवों में गर्मी बनी रहना , पसीना अधिक निकलना , रक्त - पित्त , पाण्डु , कामला , अम्श्वलपित्त , खूनी बवासीर , श्वेत तथा रक्त प्रदर , पूयमेह , पित्तज अन्य विकार , प्यास की अधिकता आदि विकारों में उत्तम गुणकारी है । गुणकारी होने के कारण अनुपात भेद से रक्तविकार , अस्थिदोष , कर्कटार्बुद आदि रोगों में भी लाभप्रद है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि-
1/2 या 1 ग्राम मधु अथवा उचित अनुपान से वैद्यकीय परामर्श से ले ।
कान्तिलेप-
यह लेप त्वचा पर आई हुई सभी समस्याओं यथा - कील - मुहासे , झाइयां झुर्रियों का पड़ना निस्तेजता , कान्तिहीनता , कालापन आदि विकारों में शीघ्र लाभकारी है । इसका चेहरे पर निरन्तर लेप करने पर व सभी विकारों को यह लेप अवशोषित कर लेता है , जिससे रोगग्रस्त त्वचा पुनः स्वस्थ हो जाती है , चेहरे का प्राकृतिक सौन्दर्य फिर से निखरता है और मुख पर ओज , तेज आभा - कान्ति , ज्योति व लावण्य आ जाता है
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
गुलाब जल या कच्चे दूध में मिलाकर चेहरे पर कम से कम 2-3 घण्टा लगाकर गुनगुने पानी से चेहरे को धोएं । रात को सोते समय भी इसको लगाकर प्रातः काल चेहरे को धो सकते हैं ।
दिव्य आंवला रसायन -
इदं रसायनं चक्रे ब्रह्मा वार्षसहस्रिकम् ।
जराव्याधिप्रशमनं बुद्धीन्द्रियबलप्रदम् ।।
भवन्त्यमृतसंयोगात्तानि यावन्ति भक्षयेत् ।
जीवेद्वर्षसहस्राणि तावन्त्यागतयौवनः ।।
एतत् रसायनं पूर्वं वशिष्ट कश्यपोऽङ्गिरा ।
जमदग्निर्भरद्वाजो भृगुरन्ये च तद्विधाः ।। चरक ।।
शास्त्र के अनुसार आमलकी रसायन अति दीर्घ आयु करने वाला , जरा व्याधियों को शान्त करने वाला , बुद्धि समस्त इन्द्रियों के बल की वृद्धि करने वाला है । इस रसायन को ब्रह्मा ने बनाया था तथा वशिष्ठ , कश्यप , अंगिरा , भारद्वाज , जमदग्नि एवं भृगु आदि ऋषियों ने प्रयोग किया , जिससे वे रोग एवं वृद्धावस्था से मुक्त हो गये थे । यह नेत्र रोग , केश रोग व अन्य उदर सम्बन्धी विकारों को दूर करता है व आयुवर्धक निरापद रसायन है ।
दिव्य एकांग वीर रस-
उपयोगः दिव्य एकांग वीर रस का प्रयोग कटि स्नायुशूल तथा नसों की समस्याओं एवं पक्षाघात , वात विकार में लाभप्रद ।
दिव्य महावातविध्वंसन रस-
सभी प्रकार के जोड़ों के दर्द व वातरोगों में लाभप्रद ।
दिव्य त्रिभुवन कीर्ति रस -
सर्दी , खांसी तथा ज्वर में लाभप्रद ।
दिव्य लक्ष्मीविलास रस-
सर्दी तथा खांसी , जीर्ण प्रतिश्याय व नासागत रोगों , गृध्रसी आदि रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य अश्मरीहर रस -
यह मूत्रल है , मूत्रकृच्छ , मूत्राल्पता तथा मूत्रनली की पथरी में लाभप्रद है ।
-पारद रहित मोती युक्त रस रसायन-
दिव्य योगेन्द्र रस -
उदरविकार , अम्लपित्त तथा समस्त पाचन व शूलरोगों में लाभप्रद ।
दिव्य कामदुधा रस ( मोती युक्त ) -
अम्लपित्त , आन्त्र शोथ ( अल्सर ) तथा उदर विकारों में लाभप्रद ।
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Ras- Rasayan |
उच्च गुणवत्ता युक्त स्वर्णघटित रस - रसायन
दिव्य फार्मेसी में विशिष्ट शोधन प्रक्रियाओं से स्वर्ण को शोधित करके शास्त्रोक्त विधि से सुयोग्य रसशास्त्र के विशेषज्ञ वैद्यों के निरीक्षण में पूर्ण सावधानी के साथ भस्मों का निर्माण करके , जीवनशक्ति प्रदान करने वाले अद्भुत स्वर्णघटित योगों का निर्माण किया जाता है । जिन जटिल व्याधियों में सामान्य औषधियां कार्य नहीं करती हैं उन रोगों में स्वर्णघटित योग निश्चित लाभ देते हैं ।
दिव्य योगेन्द्र रस -
उदरविकार , अम्लपित्त तथा समस्त पाचन व शूलरोगों में लाभप्रद ।
दिव्य माणिक्य -
रस इसके सेवन से कुष्ठ रोग , संक्रमण व चर्मरोग में लाभकारी परिणाम देता है ।
दिव्य रस राज रस -
लकवा तथा अर्दित , ( मुख पक्षाघात ) स्नायु विकार , तन्त्रिका विकार व मस्तिष्क एवं शरीर को तन्दुरस्ती प्रदान करने वाली ।
दिव्य वसंत कुसुमाकर रस-
मधुमेह तथा उससे उत्पन्न परेशानियों व कमजोरी , प्रमेह , प्रदररोग व सभी तरह के धातुरोगों में लाभप्रद ।
दिव्य स्वर्ण वसन्तमालती रस -
शिथिलता , Immunity Power का अभाव , बहुमूत्रता तथा राजयक्ष्मा में लाभप्रद ।
दिव्य कुमार कल्याण रस-
सभी प्रकार के शिशु रोगों में लाभप्रद बच्चों के आरोग्यवृद्धि एवं शारीरिकपुष्टी में सहायक ।
दिव्य बृहत् वातचिंतामणि रस -
पक्षाघात तथा सभी प्रकार के जोड़ों के दर्द व वात रोगों में लाभप्रद ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
रसौषधियां अतिअल्प मात्रा में भी अत्यन्त प्रभावकारी होती है । अतः सभी रसौषधियों का प्रयोग उचित वैद्यकीय देख रेख में या अन्य सहयोगी औषधियों के अनुपान के साथ सेवन करना चाहिए ।
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Divya Oil |
औषधियुक्त तैल , घृत एवं अन्य विशुद्ध तैल
आयुर्वेद की अति प्रभावशाली औषधियों से निर्मित तैल
घृत एवं तैल कल्प में सर्वप्रथम घृत एवं तैल का मूर्च्छन किया जाता है , जिससे उसका दोष निवारण होकर औषधीय गुणों की वृद्धि होती है । इसके बाद उसमें अनेक जड़ी - बूटियों को कूटकर कुटे हुए द्रव्यों के साथ दूध व अन्य औषधियों आदि द्रव्य पदार्थों को रोगानुसार डालकर तैल पाक विधि से पकाया जाता है , जिससे उत्तम औषधीय गुणों युक्त तैल एवं घृत की प्राप्ति होती हैं ।
दिव्य कायाकल्प तैल -
यह तैल दाद , खाज , खुजली , चमला ( एग्जीमा ) , श्वेत कुष्ठ , मण्डल कुष्ठ ( सोराइसिस ) , शीतपित्त , चकत्ते , स्किन एलर्जी , सन बर्निंग आदि समस्त चर्मरोगों में तुरन्त लाभ देता है । हाथ पैरों का फटना , जलने , कटने , व घाव आदि पर भी लगाने से सद्य प्रभावकारी , यह कायाकल्प तैल प्रत्येक घर में सदैव रखने योग्य दिव्य औषध है । पैरों में बिवाई ( क्रेक्स ) के लिए उत्तम औषधि है । कान में फुंसी एवं पस होने पर अत्यन्त लाभप्रद है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
रोग ग्रस्त त्वचा पर हल्के हाथ से मालिश करें या कटे - फटे स्थान पर कॉटन ( रूई ) के साथ पट्टी करें ।
दिव्य केश तैल -
यह बालों के लिए अमृत समान है । यह तेल असमय बालों का झड़ना , रूसी , गंजापन आदि को रोकता है । इसके लगाने से बाल स्वस्थ व घने होते हैं तथा यह बालों को असमय सफेद होने से रोकता है । अनेक दिव्य जड़ी बूटियों के मिश्रण से बना हुआ यह तैल आँखों को शक्ति देता है तथा दिमाग को शीतलता व ताकत देता है । सिर दर्द व सभी प्रकार के शिरोरोग में लाभ प्रदान करता है
मात्रा एव उपयोग विधि :-
रात को सोने से पहले आवश्यकतानुसार तैल लेकर बालों की जड़ों में अच्छी तरह लगाकार छोड़ दें । प्रातः केश कान्ति शँपू या केश कान्ति एलोवेरा आदि किसी उत्तम साबुन व शैंपू से बाल अच्छी तरह धो ले अथवा दिव्य केश तैल का प्रयोग सुबह के बाद या अपनी सुविधानुसार कभी भी कर सकते हैं ।
दिव्य पीड़ान्तक तैल-
जोड़ों का दर्द , कमर दर्द , घुटनों का दर्द , सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस , स्लिपडिस्क , चोट आदि सभी प्रकार के दर्द , शोथ व पीड़ा में लाभप्रद है । संधिस्थानों पर इस तैल को निरन्तर मालिश करने से हमारी सभी मांसपेशियां शक्तिशाली होती है , साथ ही हड्डी बनने ( बोन फार्मेशन ) की प्रक्रिया में संतुलन आता है , अतः पीड़ान्तक तैल सभी प्रकार के हड्डी के रोगों मुख्यतः गठिया ( आर्थराइटिस ) अस्थि भंगुरता ( ओस्टियोपोरोसिस ) , आमवात ( रूमेटाइड ) एवं वातरक्त ( गाउट ) आदि में विशेष लाभप्रद है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
दर्द या शोधयुक्त स्थान पर धीरे - धीरे मालिश के को त्वचा में शोषित करें । खुले स्थान व पंखे की तेज हवा में मालिश नहीं करनी चाहिए ।
दिव्य षड्बिन्दु तैल -
सिरदर्द , cold , कफ व सभी तरह के नासागत रोग एवं साइनस के संक्रमण में लाभप्रद ।
दिव्य फल घृत -
गर्भाशय के विकारों , स्त्री रोग नाशक , गर्भ धारण कराने में सहयोगी , तथा बार - बार होने वाले गर्भपात में लाभप्रद ।
दिव्य महात्रिफलादि घृत -
समस्त प्रकार के नेत्ररोग , दृष्टि विकार व केशरोग , एवं उदररोग व शिथिलता में लाभकारी ।
पतंजलि तेजस नारियल तेल -
प्राकृतिक नारियल तेल - स्वाद , सुगंध और प्राकृतिक गुणों से भरपूर जो शुद्ध एवं सब तरह के मिलावट से पूर्णतया मुक्त है ।
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Bhasm,Pishti, Parpati |
शास्त्रोक्त भस्म , पिष्टी एवं पर्पटी
विशिष्ट शोधन एवं शास्त्रीय प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित परम गुणकारी औषधियाँ
द्रव्य के शोधन पूर्वक अनेक जड़ी बूटियों के रस द्वारा भावना देकर , शास्त्रीय प्रमाणानुसार अग्नि में संस्कारित करके गजपुट , आदि पुट देकर निर्मित । भस्म बनाने की आयुर्वेदीय पद्धति ही सर्वोत्कृष्ट भस्म - निर्माण - पद्धति है । पतंजलि आयुर्वेद एवं दिव्य फार्मेसी में उक्त शास्त्रोक्त विशिष्ट शोधन प्रक्रियाओं द्वारा भस्मों का निर्माण किया जाता है । फलतः ऐसी भस्म एवं रसौषधियाँ किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं डालती हैं , साथ ही जटिल से जटिल व्याधियों में सद्यः प्रभावकारी होती हैं ।
दिव्य त्रिवंग भस्म -
मधुमेह , स्त्री एवं पुरुष सम्बंधित धातुरोग तथा मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभप्रद ।
दिव्य शंख भस्म -
कैंसर , सभी प्रकार के ( ट्यूमर ) तथा अत्यन्त शारीरिक दुर्बलता व नपुंसकता के उपचार में लाभप्रद ।
दिव्य कुल्या भस्म -
मिश्रण मिर्गी , उन्माद तथा नसों से संबंधित विकारों में लाभप्रद ।
दिव्य मण्डूर भस्म-
उदरशूल , ज्वर तथा अम्लपित्त में।
दिव्य टंकण भस्म -
खांसी और जुकाम कफज व छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय होने वाली परेशानी में लाभप्रद ।
दिव्य गोदंती भस्म-
सिददर्द , ज्वर , खांसी तथा अस्थमा में लाभप्रद कैल्शियम का प्राकृतिक स्रोत ।
दिव्य हजरूल यहूद भस्म-
मूत्र नली या गुर्दे की पथरी , मूत्र विसर्जन में कठिनाई तथा पेशाब में जलन आदि रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य लौह भस्म-
रक्ताल्पता , अम्लपित्त , पीलिया तथा अन्य उदर संबंधी समस्याओं में लाभप्रद ।
दिव्य शंख भस्म-
उदर संबंधी विकारों , अफारा , अपच जैसे जीर्ण रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य स्फटिक भस्म-
अति रक्तस्राव , खांसी , श्वास संबंधी विकार तथा व्रणरोपक व शोधक , नाक रक्तस्राव के दौरान लाभप्रद ।
दिव्य कासीस भस्म-
रक्ताल्पता , यकृत् प्लीहावृद्धि अर्थात् हिपैटिक - प्लीनोमी गेली आदि में लाभप्रद ।
दिव्य ताम्र भस्म-
कैंसर , ट्यूमर किसी भी तरह की गाँठ तथा उदर संबंधी विकारों में लाभप्रद ।
दिव्य स्वर्ण मासिक भस्म -
रक्ताल्पता , पीलिया , अनिद्रा संधिगत दुर्बलता व स्नायुविकार तथा बारंबार होने वाले ज्वर में लाभप्रद ।
दिव्य वंग भस्म -
मधुमेह तथा मूत्र संस्थानगत रोग , नपुंसकता में लाभप्रद दिव्य संगेयशव पिष्टी हृदय को बल देने वाली व शुक्रनिर्बलता को दूर करने वाली , स्त्रियों के अनियमित मासिक धर्म में लाभप्रद ।
दिव्य जहर मोहरा पिष्टी-
उच्च रक्त में लाभप्रद , हृदय को बल देने वाली , विषनाशक निरापद औषध
दिव्य अकीक पिष्टी-
ज्वर तथा हृदय विकारों में लाभप्रद ।
दिव्य मुक्ता पिष्टी -
दृष्टि , ज्वर एवं हृदय विकारों में लाभप्रद सौम्य , शीतल , पौष्टिक व पित्तविकार व आन्त्रशोथ व अल्सर में लाभकारी ।
दिव्य रजत भस्म -
इसका सेवन स्नायु , वातरोग व मिर्गी में लाभप्रद है ।
दिव्य श्वेत पर्पटी-
मूत्रकृच्छू , वृक्क व मूत्रनली की पथरी में लाभकारी व पेशाब सम्बन्धी दाह को शान्त करने वाली संग्रहणी में लाभप्रद ।
दिव्य त्रिभुवन कीर्ति रस -
सर्दी , खांसी तथा ज्वर में ।
दिव्य कहरवा पिष्टी-
खूनी पेचिश तथा अतिरक्तस्राव व रक्तप्रदर आदि में लाभप्रद ।
दिव्य प्रवाल पिष्टी-
खांसी , ज्वर अस्थिमृदुता , शिथिलता तथा अश्वलता में लाभप्रद ।
मात्रा एवं उपयोग विधि-
शुद्ध एवं शास्त्रीय विधि से निर्मित भस्म अत्यन्त प्रभावकारी एवं रोगों को समूल नष्ट करने वाली होती हैं , भस्मों का सेवन उचित अनुपान व आयु , बल का विचार करके किसी योग्य चिकित्सक के परामर्श से ही करना चाहिए ।
एकल औषधियां ( बीज आदि )
विशिष्ट औषधीय गुणों से युक्तविविध वानस्पतिक बीज
आयुर्वेद शास्त्रों की परंम्परा एवं गहन अनुसंधान के पश्चात हमने हजारों रोगियों पर प्रयोग करके अनुभव किया कि पुत्रजीवक एवं शिवलिंगी के बीजों का नियमानुसार सेवन करने से बन्ध्यात्व व सन्तति हीनता के जो कारण हैं , वे दूर होते हैं । गर्भाशय की विकृति नष्ट होती है । रजः शुद्धि होकर स्त्री सन्तान योग्य बनती है ।
दिव्य पुत्रजीवक बीज-
सतान प्राप्ति तथा गर्भाशयगत रोगों में लाभप्रद ।
दिव्य शिवलिंगी बीज-
संतान प्राप्ति एवं स्त्री रोगों वरजो विकार आदि में लाभप्रद ।
मात्रा एवं उपयोग विधि-
पुत्रजीवक बीज चूर्ण एवं शिवलिंगी बीज गिरी चूर्ण की 1-1 ग्राम मात्रा अथवा 1/4 चम्मच लेकर प्रातः सायं खाली पेट गाय के दूध से सेवन करें ।
लौह - मण्डूर
शरीर में रक्त की कमी को पूर्ण कर शारीरिक धातुओं की वृद्धि के लिए आयुर्वेद में लौह और मण्डूर का प्रधान स्थान है । मात्रानुसार इसका सेवन विभिन्न व्याधियों में लाभप्रद होता है । शोथ , पाण्डु , शारीरिक पीड़ा , रक्ताल्पता आदि में मण्डूर व लौह का विशेष उपयोग है ।
दिव्य सप्तामृत लौह-
सभी प्रकार के दृष्टि तथा उदर विकारों में ।
दिव्य पुनर्नवादि मण्डूर-
शोथ , रक्ताल्पता तथा तिल्ली वृद्धि में लाभप्रद ।
कूपीपक्व रसायन - सिन्दूर
पूर्ण शास्त्रोक्तविधि द्वारा निर्मित कूपीपक्व औषधियाँ
कूपीपक्व रस निर्माण आयुर्वेद की अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है । दिव्य फार्मेसी एवं पतंजलि आयुर्वेद द्वारा परंम्परागत शास्त्रोक्त • विधियों एवं अत्याधुनिक संसाधनों के संयोग से अति प्रभावशाली रस - रसायनों एवं कूपीपक्व रसायनों का निर्माण किया जाता है । जिससे अनेक जीर्ण व कष्ट साध्य रोगों में सद्यः लाभ प्राप्त होता है ।
दिव्य रस सिंदूर ( पाउडर ) -
ज्वर एवं मधुमेह में लाभदायक ।
दिव्य ताल सिंदूर ( पाउडर )-
श्वसन एवं त्वचा - रोगों में लाभदायक ।
दिव्य शिला सिंदूर ( पाउडर ) -
श्वसन रोगों में लाभदायक ।
दिव्य मकरध्वज ( पाउडर )-
सामान्य स्वास्थ्य के लिए टॉनिक तथा काम शक्ति वर्धक ।
मात्रा एवं उपयोग विधि -
कूपीपक्व रसायन व सिन्दूर का प्रयोग दूसरी औषधियों के साथ अनुपान भेद व आयु एवं शारीरिक अवस्था को ध्यान में रखकर किया जाता है , अतः कुशल वैद्य के निरीक्षण में ही सेवन करें ।
दिव्य गोधन अर्क -
गोमूत्र एक महौषधि है । दिव्य गोधन अर्क हिमालय क्षेत्र की विशेष गायों के गोमूत्र को परिशोधित करके सावधानी व स्वच्छता पूर्वक बनाया जाता है । जो गाये हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से स्वच्छन्द विचरण करते हुए हिमालय की जड़ी बूटियों का सेवन करती है , अतः उनका गोमूत्र और भी औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड , पोटैशियम , कैल्शियम , मैग्नीशियम , फॉस्फेट , पोटाश , अमोनिया , क्रिएटिनिन , नाइट्रोजन , लैक्टोज , हार्मोन्स ( पाचक रस ) तथा अनेक प्राकृतिक लवण पाये जाते हैं , जो मानव - शरीर की शुद्धि तथा पोषण करते हैं । दन्तरोग में गोमूत्र का कुल्ला करने से दाँत दर्द ठीक होना सिद्ध करता है कि उसमें कार्बोलिक एसिड समाविष्ट है । गोमूत्र में विद्यमान कैलशियम हड्डियों को सबल बनाता है । सिफलिस - गोनोरिया जैसे रोगों को मिटाता है । गोमूत्र मज्जा एवं वीर्य को परिष्कृत करता है । गैस्ट्रिक की समस्या में यदि आरम्भ से ही गोमूत्र का सेवन कराया जाए तो पाचनतंत्र धीरे धीरे सबल बनकर रोग मुक्त बना देता है । जुकाम , सर्दी , सांस फूलना , दमा आदि में गोमूत्र में वासाचूर्ण मिलाकर पीने से शीघ्र लाभ होता है । घुटने , कुहनियों , पैर की पिण्डलियों में दर्द , साइटिका आदि रोग होने पर , मांसपेशियों में दर्द , सूजन होने पर गोमूत्र से बढ़कर दूसरी कोई औषधि नहीं है । गोमूत्र कब्ज , यकृत रोग , बवासीर , खाज - खुजली , हृदय रोग , हाथी - पाँव ( पीलपाँव ) , गुर्दा रोग आदि में लाभदायक है । गोमूत्र शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर सभी रोगों से छुटकारा दिलाता है । दिव्य गोधन अर्क मोटापा कम करने के लिए रामबाण व कैन्सर , एप्लास्टिक एनिमिया , जैसे रोगों में भी अत्यन्त लाभकारी है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
15 या 30 मिली . आवश्यकतानुसार जल मिलाकर भोजन से पहले या बाद में प्रयोग करें ।
दिव्य धारा -
यह सिर दर्द , दाँत दर्द , कान के रोग , नकसीर , चोट , शीतपित्त , खाँसी , अजीर्ण , मन्दाग्नि आदि में लाभदायक है । सिर दर्द होने पर माथे पर इसकी 3-4 बूंद लगाकर मालिश करने तथा 1-2 बूंद सूंघने से सिर दर्द में तुरन्त राहत मिल जाती है । दाँत दर्द होने पर रूई में लगाकर पीड़ायुक्त दाँत पर लगा दें । पेट दर्द , गैस या अफारा व अस्थमा होने पर खांड , बताशा या गर्म जल में 3-4 बूंद डालकर सेवन करें । अस्थमा व श्वास रोग में सूँघने व छाती पर लगाने से विशेष लाभ होता है । श्वास रोग बढ़ने की वजह से यदि श्वास न ले पा रहे हों तो आधा - एक किलो गर्म जल में 4-5 बूंद दिव्य धारा डालकर वाष्प लेने से तुरन्त लाभ मिलेगा । 5-10 बूंद सौंफादि के अर्क से हैजे में 15-15 मिनट में दें । लाभ होने लगे तो समय भी उसी तरह बढ़ा दें अर्थात् आधे - आधे घण्टे , एक - एक घण्टे , दो - दो घण्टे पश्चात् देने लगे । इससे हैजे में निश्चित लाभ हो जाता है । सर्दी , जुकाम व एलर्जी की यह निरापद व सद्यः प्रभावकारी औषध है ।
पतंजलि मूसली पाक-
पतंजलि मूसली पाक शारीरिक दुर्बलता के लिए एक आयुर्वेदिक सवास्थ्य वर्धक टॉनिक है । यह यौन दुर्बलता , बांझपन , प्रदर , सामान्य दुर्बलता व कमजोरी में उपयोगी है अथवा कामेच्छा में कमी एवं शुक्राणुओं की कमी को बढ़ाने के लिए अत्यन्त लाभकारी है ।
पतंजलि गेहूँ जबारा ( पाउडर )-
पतंजलि गेहूँ जबारा से कैन्सर , ट्यूमर , मधुमेह , कॉलेस्ट्रोल , कोलाइटिस , बवासीर , रक्ताल्पता , उच्च रक्तचाप , हृदय की समस्याओं , जोड़ो के दर्द व महिलाओं की समस्याओं आदि रोगों में लाभप्रद है । गेहूँ जबारा विटामिन , खनिज , अमीनो एसिड , एन्जाइमों , क्लोरोफिल और आहार फाइबर का एक स्वभाविक रूप से समृद्ध स्रोत है ।
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Avleh & Pak |
स्वाद ही नहीं सेहत का रहस्य अवलेह एवं पाक
स्वादिष्ट एवं शक्तिवर्धक औषधियाँ
आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति में अवलेह व पाक का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है । आज आयुर्वेद को जानने वाला प्रत्येक व्यक्ति ' च्यवनप्राश ' से पूर्णतया परिचित है , परन्तु अवलेह व पाक के निर्माण में जिन औषधियों का मात्रानुसार प्रयोग किया जाता है , उनकी उपलब्धता व उचित पहचान न होने से और अत्यधिक महंगी होने के कारण से व्यावसायिक औषधि निर्माणकर्ता उन द्रव्यों को कम मात्रा में डालते हैं , जिससे उनका व्यावसायिक हित तो होता है , परन्तु रोगी हित नहीं होता । हमारा प्रयत्न है कि रोगी - हित को सर्वोपरि मानते हुये अप्राप्त द्रव्यों को खोजकर , उनकी पहचान की जाये तथा पूरी मात्रा में उन औषधियों को उस योग में डालकर शास्त्रोक्त विधि से उनका निर्माण किया जाये । इसका ही परिणाम है कि हमने विश्व में पहली बार अष्टवर्ग पादपों की खोज तथा उचित पहचान हिमालय के दुर्गम वनों में की तथा ' जीवनीय शक्ति वर्धक अष्टवर्ग पादप ' नामक पुस्तक की रचना की ।
पतंजलि च्यवनप्राश
Patanjali Chyawanprash in Hindi
प्राचीन काल से प्रचलित इस उत्तम रसायन का सेवन सभी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलता को दूर कर हृदय एवं फेफड़ों को मजबूती प्रदान करता है । यह शरीर की सातों धातुओं का पोषण कर कफ , खाँसी , राजयक्ष्मा , अरुचि , उदर विकार आदि को दूर करता है तथा बल , वीर्य , कांति , शक्ति एवं बुद्धि को बढ़ाता है । इसका सेवन बच्चे , स्त्री - पुरुष व वृद्धजन सभी समान रूप से कर सकते हैं ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
एक या दो चम्मच दिन में एक या दो बार खायें तथा दूध आधे घण्टे बाद पियें ।
स्पेशल च्यवनप्राश
Patanjali Special Chyawanpras
च्यवन ऋषि ने इस दिव्य ausdhi के सेवन से पुनः युवावस्था को प्राप्त किया था । तभी से यह च्यवनप्राश के नाम से भारत की ऋषि परंपरा से आयुर्वेद में प्रचलित है तथा यह च्यवनप्राश आयु एवं यौन - शक्ति वर्धक है तथा श्वसन तंत्र ( रेस्परेट्री सिस्टम ) व स्वप्रतिरक्षा ( ओटोइम्युनसिस्टम ) को मजबूत बनाता है । च्यवनप्राश केवल रोगियों के लिए ही नहीं बल्कि स्वस्थ मनुष्य के लिए भी उत्तम रसायन है । यह किसी कारण से उत्पन्न शारीरिक और मानसिक दुर्बलता को दूर कर फेफड़ों को मजबूत करता है व रक्तादि हृदय को ताकत देता है । खाँसी , कफ को दूर कर शरीर को हष्ट - पुष्ट बना देता है । यह रस , सातो धातुओं को पुष्ट करके बल , वीर्य , बुद्धि , कान्ति एवं शक्ति को बढ़ाता है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
1-1 चम्मच आवश्यकतानुसार दिन में एक या दो बार धीरे - धीरे अवलेह ( चटनी ) की तरह खाएं । स्वस्थ व्यक्ति दूध के साथ ले सकते हैं , परन्तु कफ , अस्थमा के रोगी च्यवनप्राश खाने के कुछ देर बार हल्दी या शिलाजीत दूध में ले । तुरन्त बाद दूध न पीवेवें ।
पतंजलि अमृत रसायन ( अवलेह )
Patanjali Amrit Rasayan
यह मस्तिष्क को पूर्ण पोषण देने वाला अत्यन्त लाभप्रद रसायन है । यह मेधावर्धक , शीतल , शरीर के संपूर्ण अंगों को शक्ति , पुष्टि व आरोग्य प्रदान करता है । शरीर को पुष्ट करके बल , कान्ति को बढ़ाने वाला , नेत्रों में हितकारी शीतल रसायन है , जो गर्मी की ऋतु में विशेष रूप से सेवनीय है । यह विद्यार्थियों व बुद्धिजीवियों के लिए एक उत्तम टॉनिक है ।
मात्रा एवं उपयोग वधि :-
1-1 चम्मच आवश्यकता अनुसार सुबह - शाम दूध के साथ या दूध के बिना मीठी चटनी व खाद्य पदार्थों के साथ मिलाकर भी ले सकते हैं ।
पतंजलि बादाम पाक
Patanjali Badam Pak
यह पौष्टिक रसायन है । इसके सेवन से दिमाग एवं हृदय की दुर्बलता , पित्त विकार , नेत्र रोग दूर होते हैं । यह सिर दर्द के लिए चमत्कारी औषधि है । यह बल वीर्य एवं ओज की वृद्धि करता है । ध्वजभंग , नपुंसकता , स्नायु दौर्बल्य में इसका सेवन अतीव लाभकारी है । बच्चों के सम्पूर्ण शारीरिक एवं बौद्धिक पोषण के लिए अत्यन्त लाभप्रद है । बौद्धिक कार्य करने वाले व्यक्ति एक चम्मच बादाम पाक सुबह खाकर ऑफिस जायेंगे तो दिन भर ऊर्जा के साथ काम कर पायेंगे ।
मात्रा एवं उपयोग वधि :-
1 या 2 चम्मच पाक दूध के साथ मिलाकर या इसे खाकर भी दूध पी सकते हैं । बच्चे , जवान व बूढ़े , पुरुष व स्त्रियाँ समान रूप से दूध के साथ व बिना दूध भी इसका सेवन कर सकते है ।
आयुर्वेदिक जड़ी - बूटी औषधि युक्त स्वास्थ्य वर्धक रस ( स्वरस )
तन की स्फूर्ति एवं नई ऊर्जा के साथ करें दिन की शुरूआत
अहतात्तत्क्षणाकृष्टाद्द्रव्यात्क्षुण्णात्समुद्धरेत् ।
वस्त्रनिष्पीडितो यः स रसः स्वरस उच्यते ॥ ( शार्ङ्गधर संहिता )
आयुर्वेद में स्वरस चिकित्सा को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है । प्राचीनकाल में ग्राम्य स्तर पर वैद्य उपलब्ध ये इसीलिये ताजी जड़ी बूटियों को प्राप्त कर स्वरस निकालना तथा स्वरस के द्वारा चिकित्सा करना सुगम था । अर्वाक ( आधुनिक ) काल में जब इस तरह की जड़ी - बूटियों का अन्वेषण तथा गुणवत्तायुक्त स्वरस का निर्माण अत्यन्त दुरूह हो गया था तब इस समस्या को ध्यान में रखते हुये पतंजलि आयुर्वेद एवं दिव्य फार्मेसी ने परंम्परागत स्वरस को उसी गुणवत्ता के साथ व्यापक व वृहद् स्तर पर निर्माण प्रारम्भ किया । इसी उद्देश्य से आँवला स्वरस , एलोवेरा ( घृत कुमारी ) स्वरस , लौकी स्वरस को व्यापक स्तर पर देश के कोने - कोने में पहुँचाने का श्रेय योगऋषि स्वामी रामदेव जी के माध्यम से दिव्य फार्मेसी व पतंजलि आयुर्वेद को जाता है । इसकी गुणवत्ता बनाये रखने के लिये प्रयोग में आने वाली औषधीय द्रव्यों का आधुनिक चिकित्सा विज्ञान मानकों के अनुसार उत्पादन व उसके गुणकारी पदार्थों का गहन परीक्षण करने के पश्चात स्वरस बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है ।
एलोवेरा जूस -
पाचन तन्त्र को सदा स्वस्थ रखने , गैस , कब्ज , एसिडिटी , जोड़ों का दर्द , कैंसर , बड़ी आन्त्र का संक्रमण ( कोलाइटिस ) , यौनरोग , धातुरोग , श्वेतप्रदर व रक्तप्रदर आदि समस्त स्त्री एवं पुरुष रोगों के लिए यह अत्यन्त लाभकारी है । यह त्रिदोष नाशक निरापद स्वास्थ्यवर्द्धक , सौम्य पेय ( रस ) है । जो किसी भी ऋतु में हर आयु का व्यक्ति सेवन कर सकता है । एलोवेरा एवं आँवला का जूस यदि प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में खाली पेट व सांयकाल खाने के पहले या बाद पीया जाए तो व्यक्ति सौ वर्ष तक निरोग जीवन जी सकता है । एलोवेरा आँवला का नित्य प्रयोग हमारी स्वस्थ जीवन शैली के हिस्से है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
प्रातः खाली पेट उठते ही 25 या 50 मिली पीकर ऊपर से गुनगुना पानी पी लें । शाम को खाने के 1/2 घण्टा पहले या बाद जल में मिलाकर सेवन कर सकते हैं ।
आँवला स्वरस -
इसके नित्य प्रयोग से पाचन तन्त्र ( डाइजेस्टिव सिस्टम ) , श्वसन तन्त्र ( रेस्पेरेटरी सिस्टम ) , उत्सर्जन तन्त्र ( एक्सक्रिटरी सिस्टम एवं जनन तन्त्र ( रिप्रोडक्टरी सिस्टम ) संतुलित एवं स्वस्थ होते हैं । यह मासिक धर्म की अनियमितता , रक्तप्रदर एवं श्वेतप्रदर आदि स्त्री रोगों स्वप्नदोष , प्रमेह , मधुमेह आदि में भी अत्यन्त लाभप्रद है । यह रोग एवं बुढ़ापे से बचाता है । यह विबंध में अतीव लाभकारी औषधि है । यह समस्त केश रोग व नेत्र रोगों के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है । इससे त्वचा में कान्ति व देह में स्फूर्ति भी प्राप्त होती है । आयुर्वेद में आँवले को सर्वोत्तम रसायन कहा गया है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
प्रातः 20 या 25 मिली . रस गुनगुने या सामान्य जल में मिलाकर सेवन करें । आँवला रस शाम खाने के पहले या बाद भी सेवन कर सकते हैं ।
अर्जुन आँवला स्वरस -
इसके नित्य प्रयोग से हृदय संबंधी रोग ठीक होते हैं एवं यह कॉलेस्ट्रोल को संतुलित करने में अति लाभकारी औषधि है । आयुर्वेद में अर्जुन के वृक्ष को औषधिक गुणों में सर्वोत्तम माना गया है ।
करेला आँवला स्वरस -
इसके नित्य प्रयोग से हृदय संबंधी रोग ठीक होते हैं एवं यह कॉलेस्ट्रोल को सन्तुलित करने में अति लाभकारी औषधि है । आयुर्वेद में हृदय के लिए अर्जुन के वृक्ष को औषधीय गुणों में सर्वोत्तम माना गया है ।
बादाम रोगन -
पतंजलि बादाम रोगन असली एवं पौष्टिक बादामों से तेल निकालकर तैयार किया गया है । पतंजलि बादाम रोगन के सेवन से मस्तिष्क एवं नर्वस सिस्टम को शक्ति मिलती है । यह हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका ( सेल ) को शक्ति देकर हमें भीतर से सशक्त बनाता है । समर्थ व्यक्ति सिर एवं पूरे शरीर की मालिश के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं व आम आदमी 5 से 10 बूंद दूध में डालकर पी सकते हैं । सिरदर्द व मस्तिष्क की थकान दूर करने के लिए , मेधा वृद्धि व तनाव के लिए सिर पर बादाम रोगन की मालिश करें व 5-5 बूंदें नासिका में सोते समय डालें । यह बच्चों के शारीरिक वृद्धि एवं स्मरणशक्ति के लिए भी निरापद व अत्यन्त लाभकारी है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
5 या 10 मिली . दूध में डालकर सुबह शाम सेवन करें । नासिका में नस्य लें या मालिश के रूप में आवश्यकतानुसार प्रयोग करें ।
पतंजलि गुलाब जल-
पतंजलि गुलाब जल प्राकृतिक देशी लाल गुलाबों से पूर्ण शुद्धता व पवित्रता के साथ बनाया जाता है । यह त्वचा की सौम्यता बनाये रखने में त्वचा की सुन्दरता एवं सुरक्षा व नेत्रज्योति के लिए लाभप्रद है एवं सभी प्रकार के हर्बल फेस पैक के लिए उपयुक्त है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
आँखों की सुरक्षा के लिए 1 या 2 बूंद गुलाब जल सोने से पहले आँखों में डालें । कान्तिलेपादि फेस पैक को गुलाब जल में मिलाकर लगा सकते हैं । पानी में मिलाकर स्नान भी कर सकते हैं ।
गुलकन्द-
अम्लपित्त , दाह , आन्तरिक गर्मी , हाथ - पावों में जलन , धातुरोग , अधिक पसीना आना , मूत्र में जलन व कब्ज में लाभदायक है यह सौम्य व मृदुविरेचन का कार्य भी करता है ।
दिव्य पेय -
इस पेय के सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है , जिससे कफ आदि रोग शरीर को आक्रान्त नहीं कर पाते । अतः प्रचलित चाय के स्थान पर आयुर्वेद के इस अमृत रूपी दिव्य पेय को अपनाएं ।
दृष्टि आई ड्राप -
दृष्टि आई ड्राप आँखों की एलर्जी , काला या सफेद मोतियाबिन्द ( ग्लुकोमा व कैट्रेक्ट ) , डबल विजन , कलर विजन , रेटेनाइटिस पिग्मनटोसा , रतौंधी आदि समस्त नेत्र रोगों से बचने व इन समस्त नेत्र रोगों से छुटकारा पाने के लिए यह एक उत्तम अनुभूत औषधि है ।
पतंजलि अश्वगन्धा कैप्सूल -
यह थकान , तनाव एवं सामान्य दुर्बलता को दूर करने वाली सर्वश्रेष्ठ औषधि है । यह स्नायु दुर्बलता , वात विकार जैसे आर्थराइटिस आदि को दूर करती है । इसे स्त्री , पुरुष बच्चे बड़े सभी सेवन कर सकते हैं ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
1-1 से 2-2 कैप्सूल प्रतिदिन प्रातः सायं दूध व जल के साथ सेवन करें ।
पतंजलि अश्वशिला कैप्सूल-
यह थकान , तनाव , यौन दुर्बलता , अस्थमा , एलर्जी जोड़ों का दर्द , मधुमेह जनित दुर्बलता , धातु रोग , मूत्ररोग एवं शारीरिक दुर्बलता में अत्यन्त उपयोगी औषधि है । पुरुष या स्त्री रोगों को दूरकर यह वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने की निरापद व प्रभावशाली औषध है । अश्वगन्धा जहां तनाव एवं थकान को दूर करती है , वहीं शिलाजीत शुक्र धातु का पोषण कर मधुमेह , यौन दुर्बलता को दूर कर जीवनीय शक्ति का संचार करती है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
1-1 से 2-2 कैप्सूल प्रतिदिन प्रातः सांय नाश्ता व भोजन के बाद दूध के साथ सेवन करें ।
शिलाजीत कैप्सूल-
शिलाजीत ऊर्जा , शक्ति स्फूर्ति देती है । यह यौन दुर्बलता , वातरोग ( जोड़ों का दर्द व गठिया ) , कफ रोग ( अस्थमा व एलर्जी ) , धातुरोग , मूत्ररोग , हड्डियों की दुर्बलता , मधुमेह आदि में स्त्री - पुरुष दोनों के लिए समानरूप से लाभप्रद व जीवनीय शक्ति को बढ़ाने वाला है ।
मात्रा एवं उपयोग विधि :-
1 से 2 कैप्सूल प्रतिदिन प्रातः सायं नाश्ते व खाने के बाद दूध से लें । जिनको उच्च रक्त चाप की अधिक समस्या हो तो शिलाजीत कम मात्रा में या चिकित्सक के परामर्श से ही सेवन करें ।
यौवन गोल्ड कैप्सूल -
यौवन दुर्बलता की अचूक औषधि है ।
दिव्य गैसहर चूर्ण-
इस चूर्ण के सेवन से भोजन का पाचन होकर उससे उत्पन्न होने वाले गैस , अम्लपित्त आदि रोग नहीं होते । भोजन के पश्चात पेट भारी होना , अफारा होना , दर्द , भोजन में अरुचि आदि रोगों में तुरन्त लाभ करता है । यह चूर्ण पेट की गैस को तुरन्त दूर करता है । पेट की गैस का सीधा कुप्रभाव हमारे हृदय एवं मस्तिष्क पर पड़ता है । कई बार दर्द एवं सिर दर्द का सीधा कारण पेट की गैस होती है और इसके निवारण के लिए गैसहर चूर्ण रामबाण है । सावधानी : इस चूर्ण को खाली पेट सेवन नहीं करें ।
मात्रा एवं उपयोग विधि:-
2 या 3 ग्राम अर्थात् आधा चम्मच चूर्ण खाने के बाद आवश्यकता अनुसार दिन में 1 या 2 बार गुनगुने पानी से सेवन करें ।
गिलोय घन वटी-
सामान्य दुर्बलता , ज्वर , डेंगू चिकन गुनिया , त्वचा एवं मूत्र रोग में लाभदायक।
लिव अमृत सिरप-
इसके उपयोग से लीवर की कमजोरी , सूजन , हेपेटाईटिस , फैटीलिवर व इनीमिया आदि में लाभ प्राप्त होता है । ये भूख को बढ़ाने व पाचनतंत्र को स्वस्थ बनाने के लिए एक चमत्कारी औषधि है ।
नारीसुधा सिरप व टेबलेट -
यह महिलाओं के श्वेतप्रदर , कमर दर्द , चक्कर आना , घबराहट सम्बन्धित रोगों में अत्यन्त लाभप्रद है । अति रक्तस्राव , अनीमिया व कमजोरी को दूर करने में सहायक है ।
यौवन चूर्ण-
पतंजलि यौवन चूर्ण सामान्य दुर्बलता , कमजोरी और उन्मुक्ति के नुकसान में उपयोगी है ।
शतावर चूर्ण -
यह माँ के दूध को बढ़ाने में मदद करता है इसके अलावा त्वचा के रंग को निखारता है । यौन दुर्बलता , शारीरिक कमजोरी , मांसपेसियों में दर्द आदि में लाभप्रद है ।
श्वेत मूसली-
यौन दुर्बलता , बांझपन , प्रदर , सामान्य दुर्बलता व कमजोरी में उपयोगी है अथवा कामेच्छा में कमी एवं शुक्राणुओं की कमी को बढ़ाने के लिए अत्यन्त लाभकारी है ।
इसबगोल भूसी -
यह कॉलेस्ट्राल के बढ़े हुए स्तर को कम करता है , वजन कम करने में सहायक है , आँतों के कैंसर की रोकथाम करता है , गुदा के रोगों जैसे बवासीर , भगन्दर आदि में उपयोगी है और कब्ज का इलाज कर आँतों को स्वस्थ रखता है ।
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